स्वर अधर की गली से परे

भावना के पखेरू बिना पंख के एक परवाज़ को फ़ड़फ़ड़ाते रहे
बाढ़ की ढेर संभावनायें लिये आये घन, श्याम नभ को बनाते रहे
अक्षरों से बढ़ीं शब्द की दूरियाँ, स्वर अधर की गली से परे रह गया
गीत जो कल हमारे लगे थे गले, आज नजरों को वो ही चुराते रहे

6 comments:

रंजू भाटिया said...

भावनाओं का ज्वर जब दिल पर हावी होता है तब यहीदिल की हालत हो जाती है यह चंद शब्द बहुत कुछ कह गए !!

Udan Tashtari said...

बहुत गहरे भाव!!!

राजीव रंजन प्रसाद said...

अक्षरों से बढ़ीं शब्द की दूरियाँ, स्वर अधर की गली से परे रह गया
गीत जो कल हमारे लगे थे गले, आज नजरों को वो ही चुराते रहे

गहरे कथ्य कहने में आपकी पंक्तियों का कोई सानी नहीं...

***राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous said...

सुन्दर.

मधूलिका

कंचन सिंह चौहान said...

गीत जो कल हमारे लगे थे गले, आज नजरों को वो ही चुराते रहे

bahut sundar

Shardula said...

ओह !!!

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