प्यार के पट खोलता है

मोड़ यह वयसंधियों का प्यार के पट खोलता है
और यह मन आँधियों में पात जैसा डोलता है 

आँजते  दोनो नयन ये इंद्रधानुशी स्वप्न  प्रतिपल
बाँसुरी की धुन निरंतर गूँजती अंगनाइयो मे
मौसमों  की जल तरंगे छेडते है तार मन के 
इक नई ही धुन सँवरती रागमय  शहनाइयों में

औ शिराओं में कोई ला शिंजिनी सी घोलता है 
मोड़ इक वयसंधियों का प्यार के पट खोलता है 

भोर उगती नित जगाती कुछ नई सम्भावनाएँ 
पतझरी ऋत भी बहारों के सरीखी झूमती है
काँच के रंगीन परदे पर संवरते चित्र पल पल 
आसमानों में विचारती आस मन को चूमती है 

आज का सच,शून्य होकर ही सभी कुछ बोलता है 
और यह मन आँधियों में पात बन कर डोलता है 

सेलफ़ोनी चित्रपट अटकाए रहता है निगाहें
आतुरामन हो प्रतीक्षित ताकता संदेश का पथ
कोई स्वर उठता; लगे सारंगियाँ जैसे बजीं हों 
गूँजने लगती ह्रदय में पायलों की झनझनाहट

यूँ लगे जैसे समय की चाल कोई रोकता है 
मोड़ इक वयसंधियों कप्यार के पट खोलता है 

राकेश खंडेलवाल 
१४ सितम्बर २०१९ 






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