21 November 2023

 वर्ष बयालीस बीते प्रणय पर्व के

पटकथा बन के आने लगे सामने 
एक चलचित्र में ढाल कहानी वही
फिर से नज़रों में मेरी समाने आके लगी

थी वो इक्कीस की साँझ जब दिन ढले
हल्का हल्का शरद का भी था जब स्पर्श
मन में अतिरेक था अनुभूत होता हुआ
और उल्लास के सैंग अतिशयी हर्ष था 
Jजो न पहले कभी स्वप्न में न दिखा
मन में रोमांच था कोई उम्र हुआ
अनक सी तरंगें लिए उठ रहा
भान के सिंधु पर पूर्ण उत्कर्ष था 

इक नये पृष्ठ की से लगे जोड़ने
कुछ कथानक नये मन में जुड़ने लगे

फिर नयन में उभर आये उस साँझ के
जब प्रणय सूत्र बंधन में हम ठ जुड़े 
दो डगर बढ़ के थी बिंदु इक पर मिली
और हाम और तुम एक पाथ पर। बढ़े 
यज्ञ जी अग्नि का साक्ष्य लेकर उठी
जन्म जन्मांतरों के लिए जो शपथ
वो हुई और सुदृढ़ पुनः आज फिर
सुखद हो रहे पल य दुख हों।हो। बड़े 

दूधिया चाँदनी पर पड़े बिंब थे 
यज्ञ के, सामने एक फिर मुस्कुराने लगे

ज़िंदगी के सफ़र में रहे साथ हम
वि हों पण्डन  या सिंगापुरी वीथियाँ 
हो ब्लीज़रे सिंधु का तट या थी कभी
नेक्सिको ही या या हो दुबई बस्तियाँ
घिर रही पर्वतों से झील की हो लहर 
में उमंगें से अठखेलियाँ कर यही 
या हों अक्षय और चंदन से सकते हुई
उँगलियाँ नोट निभाते हुई रीतियाँ 

ये रहे साथ यूँ ही हों जीतने जन्म 
भाव फिर आ हृदय को सजाने लगे 

आकाश खंडेलवाल 
२१ नवानर २०२३ 




दीपावली २०२३


दीप पर्व 

कक्ष की दीवार पर नव लेप चूने का चढ़ा

बारह महीने से जमा था गर्द का बादल उड़ा 

फूल गमलों में उगे थे मुस्कुराने लग गये

सांझियों को ले गये टेसू करा कर के विदा  

 

दादी बोली आंगनबाड़ी अल्पनाएँ काढ़ कर 

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर 

 

स्वास्थ्य धनवंरुभिखीरे स्वर्ण कलशों से गिरा।

तन बदन पर और मन पर संदली उबटन लगा

कृष्ण पक्षी रूप की इस इक चतुर्दश को यहाँ

हीराजनियों सा दमकता गात का हर इक सिरा

 

पूर्णिमा होती अमावस लगती रहेगी थाल भर

रोशनी की अब नदी बहती रहेगी साल भर 

 

देव पूजन के लिए मोदक इमारतों हैं सजे

गुझिया पपड़ी साथ लेकर सेव बूँदी आ गये 

बालूशाहीचमचमों के साथ रसगुल्ले लिये

देख छप्पन भोग सम्मुख दांत में उँगली दबे

 

ख़ुश्बूएँ चुंबन यही जड़ाती रहेंगी गाल पर

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर

 

कृष्ण की चढ़े गिरी को  पुनः कर परिकल्पना 

लग गया छत्तीस। गंजन भोग छप्पन सिलसिला

सात परकम्मा समेटें सात कोसी। दूरियाँ

जोत जन्मों में न मिलताएक इस दिन वो मिला 

 

गोरधनी की जय सदा बुलाती रहेगी चल पद।

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी सालभर

 

पूर्णता यह की यम की  द्विहम को मिले  

भाई की रक्षा करेगीन बहन यम के दूत से

इक नया आयाम हर संबंध को अब के मिले
वे सभी आयें निकट जो आर। हम से दूर हैं

शाह तिमिर को मी न आये , हाँ मिलेगी मात पर

ओढ़नी की ये नदी बहती रहेगी रात भर 

 

कुमुमी फुटेज रात के व्योम में

 कुमकुमी  फुटेज लग गये रात के व्योम में 

जुगनुओं से चमकाने लगी झाड़िया
वादियों में फूलता  बेला और मोतिया 
फुलझड़ी से सजी सारी पादंडियाँ 

पूर्णिमा होके अमानस अब हंसाती रहेगीरहेगी उल्लास भर 
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी रात  भर 

खेल के सैंग बताशे उमड़ने लगे खिड़कियों से 
खंड के कुछ खिलौने रहे सील पे आकार के बैठे हुए
चित्र में आके उतरे गगन से देवी और देवता 
हों मुरादें सभी पूरी। अब के बरस जैसे कहते हुए 

दूर चिंताएँ होंगीं,छुपेगा समूचा संत्रास दर
रोशनी की ये नदी बहती। रहेगी रात भर 

काजरी तम का बादल न कोई उमड़े कहीं भी तनिक
और वातावरण में न आये प्रदूषण किसी और से 
भेंट जो भी प्रकृति ने दिया है हमें विश्व में प्यार से
उस में वृद्धि कराटे हुए और झाड़  विभूषित करें 

गीत में लक्षणाएँ उगेंगी अबनये अलंकार भर 
रोशनी की बड़ी ये बहती रहेगी रात भर 

राकेश खंडेलवाल
नवम्बर २०२३ 

पृष्ठ इतिहास के खोलते दीपाली

 पृष्ठ इतिहास के द्वार को खटखटा

फिर से हंसने लगे आज इस बात पर
पीढ़ियाँ आँजती आ रही ये सपन
रोशनी अब बहेगी यहाँ रात भर 

दीप गाजा में जलता नहीं एक भी
और उकारें पर तम घना छा रहा 
क्या ये होने लगा आज ईरान में 
ये किसी की समझ में।नहीं आ रहा 
सल्तनत तालिबानी बढ़े जा रही
पंथ सारे प्रगति के भी अवरुद्ध हैं
शांति को ओढ़कर,  मुस्कुराते हुए
भित्तिचित्रों।में लगने हुए बुद्ध हैं 

और मन तक जलेगा यहाँ आदमी
साँस की बातियों की यहाँ कत कर 
एक विश्वास खंडहर हुआ जा रहा
रोशनी की नदी बह सके रात भर 

आज भारत में यौवन जला फुलझड़ी
आस ये एक फिर से जगाने लगा
दूर परमादेश में जा बेस ज़िंदगी
टूट बिखरे घरौंदे बनाने लागा 
ज्ञात संभावना एक, दस लाख में
पर दिवास्वप्न आँखों बनते रहे 
साँझ ढलती हुई ले गई थी बहा
वे महल रेट के, भोर सजाते रहे 

jजोड़ते एकविश्वास अनुपात से
जोड़ बाक़ी, गुणा और फिर भाग कर
रोशनी की ये नदी जो बही है यहाँ
आज बहती रहेगीसकल रात भर 

जल उठीरात महताब की रोशनी
फूटती चरखियों से सितारे  झड़े
कार के, फ़्लैट के और सुख शांति की
चाहना के दिये फिर संवारने लगे 
घर की अंगड़ाई में अल्पनाएँ सजी
ईशकी वंदना में झुके शीश आ
हो मुबारक दिवाली ये अब के बरस
वाक्य होठों पे सब के संकरे लगा

कामना मेरी भी आपके वास्ते 
रोली अक्षत लिए पीपली पाट पर
रोशनी की ये नदी बह उठी आज जो
आपके द्वार बहती रहे साल। भर 

राकेश खंडेलवाल
नवम्बर २०२३ 

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...