साँसों में भी घुल जाए अंधियारा

जीवन के पथ पर उभरे हों पल पल पर अवरोध निरंतर
साँसों में भी घुल जाए अंधियारा ऐसा लगता हो जब
आशा की आख़िरी किरण भी डूब चुकी हो अस्ताचल में
अटक अटक कर चले धड़कनी की गति लगने लगता हो जब

उस पल मन की गहरी परतों में संचित विश्वास जगाकर
अहम ब्रह्म के नाद स्वरों को एक बार फिर से दुहरा कर
उठो जूझते हुए विषमता के घिर कर उमड़े  बादल से
संकल्पी का पंथ सदा ही है है प्रशस्त बतलाए दिवाकर

ओ राही यह विदित रहे दृढ़  निइश्चय भरी एकनिष्ठा ही
करती। विइवश देव सलिला को धरती पर आकर बहन को

ठिठकें कदम उठे हर पग पर हो अवरुद्ध कंठ में ही स्वर
और भाव असमर्थ हुए हों देते हुए शब्द को  वाणी
नयन तलाशें बिछी हुई पगडंडी पर उभरी आहट  को
नई दिशायें बतलाने को आती हो प्रतिमा कल्याणी।

अरे पथिक  यह मत भूलो तुम,सभी अपेक्षाओं की परिणति
दिवास्वप्न जैसी होती है पल पल पर बन कर ढहने को

असमंजस को त्याग साथ लेकर पाथेय चलो यायावर
हर दिन नाव गंतव्य बुलाता तुमको निकट सुनो, बिश्वासी
अपने। मन के आइने से जमी हुई यह धूल बुहारी
मिल जाएँगी नई सफलता जिसकी छायाएँ अविनाशी

गति ही रही शाश्वत संरचनाओं के इस आदि पर्व से
गति का। स्वागत करे समय ले साथ विजयश्री के गहने को

ख़ालीपन निशब्द घरों में



खिड़की के पल्लों पर लटका
एक अधूरा सी अलसाहट 
दहलीज़ें सूनी है सारी
पौली में न कोई आहट 
ख़ालीपन निशब्द घरों में 
अब आकर के पसर गया है 
ऐसा लगता कोई हादसा
अभी यहाँ से गुजर गया है

और प्रश्न  आँजे आँखो में
निर्निमेष हम ताक रहे है 
आशंका के घने कुहासे 
वातायन से झांक रहे हैं 

राजमार्ग गलियाँ चौपालें 
देखें जिधर, उधर सूना है
एकाकीपन का ये कोहरा
लगता पहले से दूना है 
हवा छिपी जाकर कोटर में 
क्यों, ये पूछे एक गिलहरी
अड़ी हुई अंगद के पग सी
काटे कटती  नहीं दुपहरी 

अम्बर की मटमैली चादर
में बन गए कई छेदों पर
बादल के टुकड़े खुद को ही 
ला ला करके टाँक रहे हैं 

नया वेश रख कर सावन का
आया है फिर जेठ पलट कर
लगता है सुइयाँ घड़ियों की
लौटी पीछे, आगे बढ  कर
दीवारों के कैलेंडर का
पृष्ठ न बदला महीनो बीते
फैले हाथ आस को लेकर
पर फिर से सिमटे हैं रीते 

मरुथल के ढूहों पर रुक कर
पुरवाई के विवश झकोरे
पल पल उड़ती हुई धूल को
मुट्ठी भर भर फाँक रहे हैं 

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...