मूर्च्छित है भावना, बिंध वक्त के पैने शरों से
लेखनी हतप्रभ शिथिल है, मौन लेखन ओढ़ता है
काल के तो चक्र चलते हैं सदा होकर दुधारे
युद्ध तो थमता नहीं है एक पल, संध्या सकारे
चक्रवर्ती योद्धा के सामने होकर निहत्थे
हम समर्पण कर रहे हैं सारथी के ले सहारे
कर्म तो कर्तव्य है, अधिकार फल पर क्यों नहीं है
एक बस यह ख्याल आ रह रह ह्रदय झकझोरता है
हर दिशा ने तीर को संधान कर बाँधा निशाना
ढाल का परिचय रहा है हाथ से बिलकुल अजाना
अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित, द्वन्द को तत्पर खड़ा वह
आज तक सीखा नहीं है एक पग पीछे हटाना
नीर देकर हाथ में संकल्प जो करवा रहा है
एक वो ही है सभी निश्चय हमारे तोड़ता है
शान्त हो बैठी रही है गूँज जब मणिपुष्पकों की
व्यक्ति होता है परीक्षित और जय बस तक्षकों की
देवदत्तों ने लिखी है सन्धि की गाथायें केवल
टोलियाँ करती दिखी हैं जब पलायन, रक्षकों की
उस घड़ी जो आस्था की बून्द घुट्टी में मिली थी
का भरम विश्वास का आधार हर इक तोड़ता है
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नव वर्ष २०२४
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9 comments:
राकेश भाई
मनःपीड़ा को उजागर करते हृदय की तलहटी से उपजे सहज भाव वाली यह रचना सीधे दिल में उतर गई-लगभग उन्हीं गहराईयों में, जिनसे यह उपजी होगी.
बस!!! और क्या कहूँ! आपकी मनोदशा को बस सोच सकता हूँ. हम तन से न सही, मन से हर वक्त आपके साथ हैं.
नीर देकर हाथ में संकल्प जो करवा रहा है
एक वो ही है सभी निश्चय हमारे तोड़ता है
राकेश जी क्या कहूँ ! आह !! कमाल है.
"तू जो कहना चाह रहा वह भेद कौन जन जानेगा ?
कौन तुझे तेरी आंखों से बंधु, यहाँ पहचानेगा ?"
लेकिन मन की बात कहीं व्यक्त कर लेने से शायद ज़रा सा सुकून मिलता है.
कर्म तो कर्तव्य है, अधिकार फल पर क्यों नहीं है
एक बस यह ख्याल आ रह रह ह्रदय झकझोरता है
सही लिखा आपने राकेश जी ...सुंदर रचना मन के कई सवालों को पूछती हुई ..अच्छी लगा इसको पढ़ना !!
राकेश जी,
आप गीत-विधा में एक पूरी "संस्था" हैं। रवानगी और भाव्अ-प्रवणता के साथ गहरा दर्शन। यह केवल आपकी कलम से संभव है।
***राजीव रंजन प्रसाद
राकेश जी,
आप गीत-विधा में एक पूरी "संस्था" हैं। रवानगी और भाव्अ-प्रवणता के साथ गहरा दर्शन। यह केवल आपकी कलम से संभव है।
***राजीव रंजन प्रसाद
शान्त हो बैठी रही है गूँज जब मणिपुष्पकों की
व्यक्ति होता है परीक्षित और जय बस तक्षकों की
देवदत्तों ने लिखी है सन्धि की गाथायें केवल
टोलियाँ करती दिखी हैं जब पलायन, रक्षकों की
वाह !
अति सुंदर राकेश जी कमाल की रचना है ये आप की. एक एक शब्द पर मेहनत झलकती है, और भाव....वाह ... क्या कहूँ शब्द हीन हो गया हूँ.
नीरज
राकेश भाई साहब इन दुखद क्षणों में हम आपके साथ है आपकी रचना के माध्यम से हम महसूस कर पा रहे है आपके मन की व्यथा...इश्वर आपके भाई साहब की आत्मा को शान्ती प्रदान करे...और आपको इन परेशानियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करे...
सुनीता
ओह !
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