अंतिम रंग भररे जाता हूँ

 पता नहीं तूलिका रंग कल भरे न भरे किसी शब्द में

इसीलिए मैं आज साँझ में अंतिम रंग भरे जाता हूँ 

जब किशोर से यौवन की सीढ़ी पर पाँव रखा था मैंने
तब ही।से छंदों ने बाजों में भर कर मुझको दुलराया
विद्यापति जायसी मीरा तुलसी सूरा की कृतियों को
आत्मसात् कर कर के माने खुले। स्वरों में था दोहराया

कल क्या पता कंठ के स्वर भी मुम्खार्त हों या न हो पाएँ
यही सोच कर आज उन्हें फिर एक बार दुहरा जाता जून 

संस्कृति को पौराणिकता को मैंने अपनी भाषा में ढाला 
उपमाओं के अलंकार के नीत नूतन अन्वेषा किए हैं है 
इतिहासों के गहन गर्भ में बंदी जो रह गये कथानक 
उनका किया उत्खनन मैंने और नये उन्मेष दिये हैं हैं 

किसे पता परतों की तह यह खुले न खुले कल की सुबह
इसीलिए मैं परत आज बस एक और खोले जाता हूँ 

मां शारद के आशीषों के जीतने शब्द गिरे झोली में
उन सब में अनुभूति घोल कर भारी आभीरों भेंट चढ़ाया
वीणा की एंट्री की सराहां को फिर सजा होंठ पर अपने
मैंने अपना रचा हुआ हर गीत उसी एक धुन एम में गया

क्या मालूम राग सराहां के कल न सजायें आ अधरों को
सीलिये मैं आज यहाँ पर अंतिम गीत सुना जातांकप्पन 

राकेश खंडेलवाल अक्तूबर z२०२३ 


अंतिम धड़कन

 जीवन पूँजी 


चलती हुई घड़ी के सैंग सैंग खर्च हो रही जीवन पूँजी

किसे पारा कब निमिष कौन सा अंतिम धड़कन ख़र्च कर चले 


समय अक्षि कोई रहा ना, न है और न कल ही होगा
बिसलपुर प्रादुर्भाव हुआ है निशित है मित्न ही हिफ़ाज़त
प्राची की क्यारी में उगती साथ भोर के जितनी किरणें
साँझ ढले पर उनको जाकर अस्ताचल में खोना होगा 

कटमे पृष्ठ रोज़ जुड़ते हैं इतिहासों के महाग्रंथों में
किसे पता कब दिवस कौन आ एक वृद्धि आ नई कर चले 

युगों युगों से इतिहासों ने ये ही गतिक्रम हैं दुहराये
 फड़क बदल कर चेहरेवे ही कुछ चरित्र ही सम्मुख आये
कुछ का नाम हुआ है अंकित शिलालेख पर स्वर्ण समय के
और चंद है नाम किसी के अधर तलाक़ को छू न पाये

किसे ज्ञात है नाम किसी का सरगम का स्वर बन कर गूंजे
ताकि मौन की घाटी कोई करे उपेक्षित और फिर चले

अव बेताब की और अचेतन,चेतन मन की घिरी घटाएँ
इक दूजे में गूँथी हुई हैं ज्यों पूनम में चंद्र विभाएँ
विधना के कर की उँगली का इंगित निर्धारित करता है
किन दृश्यों को आगे लायें,किसका पटाक्षेप कर जायें

किसे पता हो पतनअवनका इस दुनिया के रंगमंच की
ताकि मुख्य जो पात्र रहा,  अब अपनी पलकें बंद कर चले 

राकेश खंडेलवालल
अक्तूबर २०२३ 


नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...