अंतिम धड़कन

 जीवन पूँजी 


चलती हुई घड़ी के सैंग सैंग खर्च हो रही जीवन पूँजी

किसे पारा कब निमिष कौन सा अंतिम धड़कन ख़र्च कर चले 


समय अक्षि कोई रहा ना, न है और न कल ही होगा
बिसलपुर प्रादुर्भाव हुआ है निशित है मित्न ही हिफ़ाज़त
प्राची की क्यारी में उगती साथ भोर के जितनी किरणें
साँझ ढले पर उनको जाकर अस्ताचल में खोना होगा 

कटमे पृष्ठ रोज़ जुड़ते हैं इतिहासों के महाग्रंथों में
किसे पता कब दिवस कौन आ एक वृद्धि आ नई कर चले 

युगों युगों से इतिहासों ने ये ही गतिक्रम हैं दुहराये
 फड़क बदल कर चेहरेवे ही कुछ चरित्र ही सम्मुख आये
कुछ का नाम हुआ है अंकित शिलालेख पर स्वर्ण समय के
और चंद है नाम किसी के अधर तलाक़ को छू न पाये

किसे ज्ञात है नाम किसी का सरगम का स्वर बन कर गूंजे
ताकि मौन की घाटी कोई करे उपेक्षित और फिर चले

अव बेताब की और अचेतन,चेतन मन की घिरी घटाएँ
इक दूजे में गूँथी हुई हैं ज्यों पूनम में चंद्र विभाएँ
विधना के कर की उँगली का इंगित निर्धारित करता है
किन दृश्यों को आगे लायें,किसका पटाक्षेप कर जायें

किसे पता हो पतनअवनका इस दुनिया के रंगमंच की
ताकि मुख्य जो पात्र रहा,  अब अपनी पलकें बंद कर चले 

राकेश खंडेलवालल
अक्तूबर २०२३ 


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