आवंटित जीवन की पूँजी

 अपने विश्वासों को थोड़ा आज सत्य पर पटाखा, जाना

चमक धमक के पीछे केवल एक शून्य है केवल काला

महाम्रुत्युज्य मंत्र जाप तुम चाहे सप्त कोटि कर डालो
मर्यादा पुरुषोत्तम के मंदिर में घी के दीपक  बालों
योगेश्वर की जन्मभूमि को कितनी साहस कारो परकम्माचा
चार धाम की यात्रा करके चाहे जितना मन बहाल ले 

लेकिन विधना ने जितनी आवंटित की। जीवन की पूँजी 
चार धाम की यात्रा करके चाहे मन जितना बहाल लो 

जीतने दिवस बरस में, उतने व्रत और कथा सभी हैं सच्ची
सभी पूर्ण फल देने वाली पंडित की गारंटी पक्की
हम को है मालूम हक़ीक़त जन्नत जी ज्या है, पर फिर भी
दिल को बहलाने की ख़ातिर लगती हैं ये बातें अच्छी

इंसानों की क्या बिसात है, रहा देवताओं के कर में
बिना एक क्षण की वृद्धि के रीता रहा आस का प्याला 

होम हवन ग्रह शांति प्रार्थना, पूजा पाठ सभी बेमानी
जो नक्षत्र दूरियाँ जिनकी पड़े कल्पना के अनजानी
जिनसे इक प्रकाश कान आते आते शंख कोटि युग लगते 
उसके जीवन पर प्रभाव की बातों का क्या होगा मानी

जितना मन यथार्थ से हमने दूर रखा, उतने ही उलझे
सत्य सर्वदा सत्य रहा है, कोई नहीं झुठलाने वाला 

राकेश खंडेलवाल
सितंबर २०२३ 

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