भले ही साथ मत दो तुम चुनी इस राह पर मेरा
मेरे संकल्प में बस कोई भी बाधा नहीं बनना
सुनो सिद्धार्थ के पथ में बना व्यवधान क्या कोई
यशोधर द्वार रोके क्या खड़ी होकर वहां रोई
नहीं रोका था राहुल ने पिता अन्वेषणा में रत
तपस्या ने बुलाया था प्रतीक्षा में जो थी खोई
चलें जब कृष्ण बन कर द्वारका को पाँव ये मेरे
अपेक्षा है यही तुमसे कि तुम राधा नहीं बनना
हुआ अभिमन्यु शाश्वत, उत्तरा की प्रेरणा से ही
न ममता ही सुभद्रा की खड़ी हो राह को रोकी
बनी गलहार
रानी तोड़ कर अनुराग के बंधन
उसी से तो था चूडावत समर में हो सका विजयी
रहूँ इतिहास में बन कर तुम्हारे साथ बरसों तक
नहीं दोहराई जाए,
एक वह गाथा नहीं बनना
रचो इतिहास जिसको भूल पाना हो
नहीं सम्भव
रहे स्वर्णांकित लक्ष्मी, पद्मिनी शान और गौरव
प्रणेता थी हुई रत्ना,चरित मानस प्रवाहों की
बढ़ाया कोरवाकी ने, कलिंग। सम्राट जय सौरभ
तुम्हें अधिकार अपना पात्र जो चाहो वही चुन लो
पराजित सर टिके जिस पर,
वो इक कांधा नहीं बनना