एक अपरिचय के आँगन में

 चले निरंतर मंज़िल पथ पर

आ पहुँचे पर आज अचानक
एक अपरिचय के आँगन में
वयसंधि के एक मोड़ ने
जब हमको दरवेश बनाया
बस तब से विश्रांति निमंत्रण
हर ढलती संध्या ठुकराया
गया बताया यह ही हमको
जब तक गति, तब तक जीवन है
मूल मंत्र बस यही साध कर
हमने अपना पाँव बढ़ाया
आ पहुँचे हम आज अचानक
जहाँ शाख़ पर सर्प झूलते
बेलों जैसे, चंदन वन में
अनुरागों के तरु की छाया
विलय हो गई उगी धूप में
घिरे सांत्वना के पल सारे
अधरों से छलके विद्रूप में
पथ के गीतों के स्वर को तो
निगल गया इकतारा बजता
रहे सिमट कर नीड़ राह के
संवरी निशि के स्याम रूप में
जहाँ जले थे अधर तृषा से
वहाँ उगी थी फसल प्यास की
प्रतिपल उमड़ रहे सावन में
संकल्पों से अनुबंधित मन
यायावर था रजनी वासर
और रहा आवारापन भी
बांध पगों में अपनी झाँझर
थाली में भर धूप दे गई
जब आइ छत पर दोपहरी
लेकिन हठी साँझ थैली में
ले जाती उसको बुहार कर
एक किरण अब भी तलाशते
कंधे छील रही भीड़ों के
मध्य बने इस शून्य विजन मे

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...