भोर का आवरण
छँट गया तम मवासी अब व्योम से
भोर का हटने लगा है आवरण
गूंजती है मंदिरों में आरती
साथ में ले बज रही कुछ घंटियाँ
रश्मियों का कर रहे स्वागत पुनः
कर्ष के द्वारा, खुली है खिड़कियाँ
भर रहा उल्लास से फिर आज मन
इक नए संकल्प का ले आचमन
धार नादिया की टाटी पर छेड़ती
जलतरंगों की मदिर मोहक धुनें
झाड़ियाँ लहरा रही है तीर पर
राग सरगम के नये से जब सुनें
मुस्कराने लग गया वातावरण
मौसमों ने आज बदला आचरण
हैंड ख़ुद ही अब संवारने लग गये
अंतरे भी आप बनाने लग गये
शब्द अपने आप माला में जिंथे
और मुखड़े आ निखारने लग गये
आँजने भाषा लगी है व्याकरण
भोर का हटाने लगा हैनेड लगा है आवारा
राकेश खंडेलवाल
२६ अप्रैल २०२३