डूब गया सब कुछ श्याम विवर में
झुक गई बोझिल पलकें
पारदर्शी खुल गई हैं
दूर तक फैले उजाले
काँच के रंगीन प्याले
छलकाते अभ्राकी चूरा निरंतर
चित्रपट पर
तड़पड़ारी कौंधती है
सातारंगी रश्मियाँ हर और जैसे
और आता दूर से स्वर
कोई मुरली का मनोहर
दे रहा आह्वान कोई
चेतना संपूर्ण सोई
२ अप्रैल २०२३
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