क्या पता किस जन्म का था पुण्य कोई भी बकाया
अंत के द्वारे गया पर खटखटा कर लौट आया
है विदित इतना न रह पाया कोई न रह सकेगा
नयन आगत के सपन हर रोज़ लेकिन आँजता है
जानता हर क्षण निरंतर घट रहा है संचयों से
साँस के घट को सहज ही रोज़ रह रह माँजता है
क्या पता दिन आख़िरी हो कौन सा जो नित उगाया
आज वापिस खटखटा कर द्वार को मैं लौट आया
ज़िंदगानी की डगर पर कब उठे अवरोध कोई
कौन कंकड़ शैल बन कर पंथ को किस और मोडे
रिस रहे घट से सभी कुछ खर्च होता जा रहा है
है असंभव कोई इसमें आज लाये और जोड़े
आज तो मोहलत जरा सी देर की मैं माँग लाया
खटखटा कर आख़िरी द्वारा अभी मैं लौट आया
आज जो है वह कभी कल भी रहेगा कौन बोले
पृष्ठ तो इतिहास के हैं अब खुले बाँहें पसारे
जान न पाये किसंध्या आख़िरी कब आ ढालेगी
और कल न पालक खोले भोर जब आकर पुकारे
आज लिख लूँ शब्द जिनको मैं अभी तक लिख न पाता
द्वार अंतिम खटाकर्टा कर आज तो हूँ लौर आया
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