धूप चमकती है पूरे दिन
टँका समय अलगनियों पर
किससे जाकर करें शिकायत
मौसम की रंगरेलियों पर
गर्म हवा के झोंके ख़सर
सुख रहे पत्ते सारे
पूरी बगिया पर छाते हैं
बस पतझड़ के अंधियारे
एक शुषाक्तता घिरती है
खिलने से पहले कलियों पर
किससे जाकर करें शिकायत
मौसम की रंगरेलियों पर
निर्जल हुई भाव की नदिया
शब्द नहीं अब ढल पाते
स्वर घुट कर रह गये कंठ में
गीत भला कैसे गाते
बस अवसाद गिरा है आकर
मन की गितांजलियों पर
सुन पाएगा कौन शिकायत
मौसम की रंगरालों पर
दिन के उगते उगत छाते
अस्ताचल के अंधियारे
घने तिमिर में लिपटे रहते
घर आँगन और चौबारे
एक कटोरा भरी अमावस
बरसी आकर गलियों पर
सुन पाया है कौन शिकायत
मौसम की रंगरेलियों पर
राकेश खंडेलवाल
अप्रैल #२०२३
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