दीपावली २०२३


दीप पर्व 

कक्ष की दीवार पर नव लेप चूने का चढ़ा

बारह महीने से जमा था गर्द का बादल उड़ा 

फूल गमलों में उगे थे मुस्कुराने लग गये

सांझियों को ले गये टेसू करा कर के विदा  

 

दादी बोली आंगनबाड़ी अल्पनाएँ काढ़ कर 

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर 

 

स्वास्थ्य धनवंरुभिखीरे स्वर्ण कलशों से गिरा।

तन बदन पर और मन पर संदली उबटन लगा

कृष्ण पक्षी रूप की इस इक चतुर्दश को यहाँ

हीराजनियों सा दमकता गात का हर इक सिरा

 

पूर्णिमा होती अमावस लगती रहेगी थाल भर

रोशनी की अब नदी बहती रहेगी साल भर 

 

देव पूजन के लिए मोदक इमारतों हैं सजे

गुझिया पपड़ी साथ लेकर सेव बूँदी आ गये 

बालूशाहीचमचमों के साथ रसगुल्ले लिये

देख छप्पन भोग सम्मुख दांत में उँगली दबे

 

ख़ुश्बूएँ चुंबन यही जड़ाती रहेंगी गाल पर

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर

 

कृष्ण की चढ़े गिरी को  पुनः कर परिकल्पना 

लग गया छत्तीस। गंजन भोग छप्पन सिलसिला

सात परकम्मा समेटें सात कोसी। दूरियाँ

जोत जन्मों में न मिलताएक इस दिन वो मिला 

 

गोरधनी की जय सदा बुलाती रहेगी चल पद।

रोशनी की ये नदी बहती रहेगी सालभर

 

पूर्णता यह की यम की  द्विहम को मिले  

भाई की रक्षा करेगीन बहन यम के दूत से

इक नया आयाम हर संबंध को अब के मिले
वे सभी आयें निकट जो आर। हम से दूर हैं

शाह तिमिर को मी न आये , हाँ मिलेगी मात पर

ओढ़नी की ये नदी बहती रहेगी रात भर 

 

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