भाव की न तो गोदावरी ही बही, न बही नर्मदा न बही ताप्ती
भावना लड़खड़ाती हुई रह गईचंद शंकाओं से थी घिरी काँपती
रंग फ़ागुन के पतझरचुरा ले गया,जेठ ने लूट ली सावनी हर घटा
और अनुभूतियाँ रह गईं मोड़ पर राह अभिव्यक्तियों की रहीं ताकती
-------------------------------------------------------------
आपके कुन्तलों से लिपट कर गई तो उमड़ती घटा सावनी हो गई
आपके होंठ को चूम कर जो चली, गुनगुनाती हुई रागिनी हो गई
आपके स्पर्श मे एक जादू भरा, मानने लग गये आज सब ही यहाँ
आपकी दॄष्टि की रश्मियां थाम कर मावसी रात जब चाँदनी हो गई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
7 comments:
आदरणीय राकेश जी,
दोनो ही मुक्तक मनहर हैं, बहुत सुन्दर रचनायें..
***राजीव रंजन प्रसाद
अति सुन्दर!!! बधाई.
वाह ! क्या बात है. क्या कहूँ ?? बस बार बार पढ़ कर डूबता-उतराता हूँ. कमाल है.
रंग फ़ागुन के पतझरचुरा ले गया,जेठ ने लूट ली सावनी हर घटा
और अनुभूतियाँ रह गईं मोड़ पर राह अभिव्यक्तियों की रहीं ताकती
बहुत खूब लिखा है राकेश जी आपने ..दोन ही बहुत खूबसूरत है .यह पंक्ति बहुत अच्छी लगी मुझे
राकेश जी आपको बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की आप यूं ही सुदर गीत रचते रहें यही शुभ कामना है मेरी :)
जन्मदिन की बधाई व शुभकामनाएं
राकेश जी -
प्रात स्वजनों सा मिला था, एक चमका मधुर तारा
शाम यूँ संदेस आया, था जनम का दिन तुम्हारा
- जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं - मनीष
Post a Comment