आज २०० वीं पोस्ट देते समय एक सुखद अनुभव हो रहा है. इस सफर में आप सबका स्नेह मिला, बेहतरीन साथी मिले. सभी का आभार. ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये और गीतों की यह महफिल यूँ ही सदा सजती रहेगी.
एक बार पुनः आभार.
आज फिर महका किसी की याद का चंदन
आज फिर महका किसी की याद का चन्दन सुलग कर
आज फिर बदली नयन में एक सावन बो गई है
आज फिर ज्योतित हुए वे दीप कल जो बुझ गये थे
पीर के वह बंध फिर से खुल गये जो बँध गये थे
फिर बहारों से मिले हैं फूल सूखे पुस्तकों के
फिर हुए गतिमान पल, पीपल तले जो थम गये थे
फिर लगा है लौट आई है पलों की पालकी वह
आज तक लौटी नहीं, इस राह पर से जो गई है
चेतना, अवचेतना के शब्द धूमिल, हो उजागर
भावना के सिन्धु तट पर भर रहे हैं भाव-गागर
चित्र पलकों के दरीचों में विगत की आ संवरकर
रँग रहे हैं मन वितानों को नई कूची सजा कर
चल रही कोमल पगों से जो हवा, के हाथ थामे
आज सुधि भी लग रहा है पंथ में ही सो गई है
आस पगली घूमती है, मुट्ठियों में स्वप्न बांधे
पर्वतों से भी कहीं ऊँचे किए अपने इरादे
किंतु है अदृश्य हाथों में थिरकती तकलियों सी
वह अजानी कौन उस पर किस तरह का सूत काते
चाव के रंगों बनाई आंगनों की बूटियों के
एक हल्की सी नमी आ रंग सारे धो गई है
कामना की क्यारियों में गंध के पौधे उगाती
शब्द होठों के लरजते छंद में बुनती सजाती
चित्र खींचे हैं क्षितिज पर एकरंगी भावना के
पांखुरी लेकर अपेक्षायें सहज पथ पर बिछाती
पर प्रतीक्षा की विरासत में मिली हैं जो धरोहर
आज लगता उम्र उसकी और लम्बी हो गई है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
17 comments:
गजब रचना राकेश भाई-सभी अन्य १९९ रचनाओं की तरह अद्भुत. आने वाली लाखों प्रविष्टियां भी ऐसी ही उम्दा-इसके बाद के मानक ज्ञात नहीं हैं इस मूढ़ बुद्धि को, होंगी, यही कामना है.
बहुत बधाई एवं अनेकों शुभकामनायें.
बधाई और मंगलकामनायें।
दोहरे शतक की बधाईयाँ, शीघ्र ही 2000 वीं पोस्ट लिखें यह शुभकामनायें…
राकेश जी अब जब आप भारत आएं तो हम लोगों की कलमें तोड़ जाएं क्योंकि आप अकेले ही इतना अच्छा लिख रहे हैं कि हम लोगों की कलमों का औचित्य ही क्या है । और हां मैं ये मानता हूं कि आपका ये गीत आपके सभी गीतों में सर्वश्रेष्ठ है । मां सरसवती ने आपके सर पर हाथ रखा हुआ है और अापकी कलम को अपना आर्शिवाद दिया हुआ है ।
फिर हुए गतिमान पल, पीपल तले जो थम गये थे
फिर लगा है लौट आई है पलों की पालकी वह
आज तक लौटी नहीं, इस राह पर से जो गई है
ये विचार व्यक्ति के नहीं होते ये तो ऊपर से उतरते हैं ।
मैं क्या कह सकता हूँ सिवाय इसके की इस पडाव की लिए आपको बधाई
और आगे का आपका सफर इससे भी ज्यादा सफल और हमलोगों के लिए प्रेरणा दायक हो.
बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं ।
ऐसे ही और शतक बनाते जाइए।
पर प्रतीक्षा की विरासत में मिली हैं जो धरोहर
आज लगता उम्र उसकी और लम्बी हो गई है
बहुत ही सुंदर लगी रचना...राकेश जी आपकी २०० वी पोस्ट पर हार्दिक बधाई
मुझे यह कहने में कोई संदेह नहीं हो रहा की आप वर्तमान समय के सर्वश्रेष्ठ गीतकारों में से एक हैं ...पुन: बधाई
रीतेश गुप्ता
राकेश जी:
आप को इस दोहरे शतक पर हार्दिक बधाई । माँ शारदा की कृपा आप पर यूँ ही बनी रहे ।
किंतु है अदृश्य हाथों में थिरकती तकलियों सी
वाह ! शब्द नही है तारीफ़ के लिये । आप पाठशाला है ।
सजी रहे शुभ लेखनी या कि,
की - बोर्ड आपके हाथ,
रचतेँ रहेँ एक से बढकर एक,
कविता यूँ ही, कविराज !
बधाई हो बधाई !!
-- लावण्या
आस पगली घूमती है, मुट्ठियों में स्वप्न बांधे
पर्वतों से भी कहीं ऊँचे किए अपने इरादे
किंतु है अदृश्य हाथों में थिरकती तकलियों सी
वह अजानी कौन उस पर किस तरह का सूत काते
वाह राकेश जी हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत रचना है .डबल सेंचुरी की बहुत बहुत बधाई :)
बहुत बहुत बधाई...दोहरे शतक के लिए....
बहुत बहुत बधाई...दोहरे शतक के लिए....
दोहरे शतक के लिए बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं!
आपके गीतों की अपनी मौलिक अलग शैली के कारण आपकी रचनाओं की रंगत कुछ और ही है। शब्दावली, कल्पना और भाषा की अदभुत् पकड़ तो कोई आपसे सीखे। यह रचना लाजवाब है!
चरैवेति-चरैवेति
राकेश जी बहुत-बहुत बधाई...
गीत कलश की समस्त अर्थपूर्ण अभिव्यक्तियाँ वास्तव में हृदय-स्पर्शी हैं। गीतों की प्रवाहमयता, भाव, कथ्य और शिल्प रोमांच से अभिभूत करते हैं। गीतों को बराबर गुनगुनाने का मन करता है। आपके गीतों की सुगन्ध स्वस्थ वातावरण निर्मित करने में सक्षम है। साधुवाद स्वीकारें !
Post a Comment