कैसे मैं दूं अब धन्यवाद
संदर्भ: http://udantashtari.blogspot.com/2008/05/blog-post_18.html
आप सभी का धन्यवाद, मैं सोच रहा कैसे दे पाऊँ
जो जल जल कर बुझ जाती उस दीपशिखा सा था एकाकी
किन्तु आपने बरसाई जो स्नेह सुधा मेरे आँगन में
उससे इस रीते प्याले को भर देती सुधियों की साकी
शब्दों की इस यात्रा में हम जो चले साथ हो सहराही
तब ही मैं नूतन शैली में आयाम विचारा करता हूँ
क्रन्दन का आंसू से नाता, छन्दों का गीतों से रिश्ता
कोसों हों मुझसे दूर आप, मैं लेकिन निकट समझता हूँ
यह कलम कभी चलते चलते रुकने को होती थी आतुर
पर मिला आपका स्नेह मुझे, वह तोड़ेगा हर सूनापन
जो धवल चाँदनी के टुकड़े भेजे हैं शब्दों में रँगकर
उनसे मैं चित्रित कर लूंगा, अपने विश्वासों का आँगन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
3 comments:
बिल्कुल, आपकी लेखनी का हर वक्त इन्तजार लगा रहता है. बस, आप तो अपनी कथनी कहते रहें, कविता खुद ब खुद रच जायेगी. :)
फ़िर से बधाई!
शब्दों का नाता मुखर रहे..बाकि सब चाहे मौन रहे....
Post a Comment