फूल की पांखुरी और अक्षत लिये, मैने संकल्प का जल भरा हाथ में
आपका ध्यान हर पल रहे साथ में,भोर में सांझ में, दोपहर,रात में
स्वप्न की वीथिकाओं में बस आपके चित्र दीवार पर मुस्कुराते रहें
आप मौसम की परछाईं बन कर रहें, ग्रीष्म में, शीत में और बरसात में
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नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
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हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
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जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
4 comments:
बहुत सुंदर मुक्तक है.
आप जैसे श्रेष्ठ कवि की कविताओं पर टिप्पणी करने का साहस नहीं जुटा पाता हूं। मेरे शब्दों में शायद इतना वज़न नहीं है कि आपकी कविताओं पर टिप्पणी करने का दुस्साहस कर सकूं।
तुम्हारी हंसी की फुरेरी बना कर साथ लाया था
वो शायद अत्र बन कर फ़िज़ा में घुल रही होगी
तभी सभी के चेहरों पर आज हंसी दिखती है।
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आंगन में आज चांदनी की अजब सी रौनक है
उंगलियों में तुम्हारी बिछिया भी नहीं दिखती!
समीर भाइ- धन्यवाद
अनुराग जी- आपके ख्याल सुन्दर हैं
राकेश जी:
सुन्दर मुक्तक है।
....
होठों पे मेरे कहानी तुम्हारी है
सपनों में डूबी निशानी तुम्हारी है
बचपन,बुढापा तुम्हें को समर्पित है
सारी की सारी जवानी तुम्हारी है ।
सादर
अनूप
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