ज्योति के पर्व पर दीप की वर्त्तिका आपका पथ उजालों से भरती रहे
फुलझड़ी की चमक, आपके शीश पर, बन सितारे निशा दिन चमकती रहे
कामना के सुगंधित सुमन आपके घर की फुलवारियों में महकते रहें
ईश के सौम्य आशीष की छाँह में, ज़िन्दगी आपकी नित संवरती रहे
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ज्योति का पर्व आकर खड़ा द्वार पर
चाँदनी आज फिर गीत गाने लगी
फूल की पांखुरी, गंध, मेंहदी लिये
देहरी अल्पना से सजाने लगी
थाम भेषज चषक आज धन्वन्तरि
सिन्धु से फिर निकल आ रहा गांव में
कर रहीं अनुसरण झांझियां बाँध कर
कुछ उमंगों को पायल बना पांव में
आज फिर हो हनन आसुरी सोच का
रूप उबटन लगा कर निखरने लगा
मुखकमल घिरता स्वर्णाभ,रजताभ से
सूर्य बन कर गगन पर दमकने लगा
उड़ते कर्पूर की गंध में कल्पना
आरती के दियों को सजाने लगी
बढ़ रहीं रश्मियाँ हर किसी ओर से
सारे संशय के कोहरे छँटे जा रहे
जो कुहासे थे बदरंग पथ में खड़े
एक के बाद इक इक घटे जा रहे
आस्था दीप की बातियों में ढली
और संकल्प घॄत में पिघलता हुआ
सत्य के बोध को मान सर्वोपरि
मन में निश्चय नया और बढ़ता हुआ
थालियाँ भर बताशे लिये कामना
हठरियाँ ज़िन्दगी की सजाने लगी
आओ आशा की लड़ियों की झालर बना
द्वार अपने ह्रदय के सजायें सभी
द्वेष की हर जलन, दीप की लौ बने
रागिनी प्रीत की गुनगुनायें सभी
अंधविश्वास, अज्ञान, धर्मान्धता
के असुरगण का फिर आज संहार हो
झिलमिलाता हुआ ज्योत्सना की तरह
हर तरफ़ प्यार हो और व्यवहार हो
एक आकाँक्षा साध में घुल रही
स्वप्न आँखों में नूतन रचाने लगी
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8 comments:
"आओ आशा की लड़ियों की झालर बना
द्वार अपने ह्रदय के सजायें सभी
द्वेष की हर जलन, दीप की लौ बने
रागिनी प्रीत की गुनगुनायें सभी"
बहुत प्यारा संदेश और सबसे प्यारी आपकी रचना. बधाई.
आपको दीपावली की बहुत शुभकामनायें एवं बधाई.
बहुत अच्छा लगा इतनी सुंदर कविता पढ़कर.
दीपावली की शुभकामनायें.
दीपावली की सुबह को कविता मय करने के लिये धन्यवाद।
यह पर्व आपके तथा आपके परिवार एवं मित्र को खुशिया प्रदान करे। दीपावली मंगलमय हो।
बढ़ रहीं रश्मियाँ हर किसी ओर से
सारे संशय के कोहरे छँटे जा रहे
जो कुहासे थे बदरंग पथ में खड़े
एक के बाद इक इक घटे जा रहे
राकेश जी,
मैं कवि नहीं हूं इसलिये मेरे पास शब्दों की कमी हमेशा रहती है। भवनायें अवश्य हैं पर समझ में यह नहीं आ रहा है कि उचित शब्दों की अनुपस्थिति में आप जैसे श्रेष्ठ कवि की कविताओं की सच्ची प्रशंसा कैसे करूं।
इतना ही कह सकता हूं कि मुझे बहुत भाती हैं।
नैन चमके
दीये की रौशनी से
यही है खुशी
शुभ दीपावली
पुकारें आंधियां चाहे
प्रभंजन मत्त सा डोले
क्षणों को लौ बनाता
ज्वालशिल्पी दीप यों बोले
थकन कैसी पराजय क्या
हमें अब रात का भय क्या! (महादेवी वर्मा)
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
आपका जीवन अधिकाधिक ज्योतिर्वान हो !
राकेशजी,
आपकी काव्य सरिता कलश मेँ ना समायेगी --
सागर सा विशाल पट चाहीये अब तो उसे !
" दीप जले दीप जले,
आँगन मेँ हर्ष पले,
मन म्एम उमँग पले,
आहा !! दीप जले...
-- अब दीप जले "
यूँ ही लिखते रहिये --
दीपावली की अनेकोँ शुभ कामनाएँ -
सादर ~ सस्नेह
लावण्या
झिलमिलाता हुआ ज्योत्सना की तरह
हर तरफ़ प्यार हो और व्यवहार हो
बहुत सुन्दर राकेश जी। दीपावली पर की गयी कामना बहुत कुछ कह गयी। आपको,आपके मित्रों,आपके रिश्ते-नातों को भी ईश्वर सारी खुशियाँ प्रदान करे। आपकी लेखनी इसी तरह दुनिया में एक विशेष स्थान बनाये। दीपावली की हार्दिक बधाई
डॉ० भावना
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