आपको देख कर देखने लग पड़ी
खुद को दर्पण में कलियों की अँगड़ाईयां
रूपमय चाँदनी ओढ़ कर बदलियों की
चुनरिया को चेहरा छुपाने लगी
वादियों में लगी गुनगुनाने हवा
आपकी ओढ़नी का सिरा चूमकर
गंध की सिहरनें गीत गाने लगीं
अपनी मदहोशियों में लिपट झूमकर
चुनता पुंकेसरों के कणों को मधुप
भूल कर अपना आपा ठगा रह गया
एक झरना नजर आप पर डाल कर
चलता विपरीत फिर स्रोत को बह गया
सांझ के दीप की रश्मियां आपकी
दॄष्टि का स्पर्श पा जगमगाने लगीं
छू के पग आपके राह की धूल भी
सरगमी हो डगर में थिरकने लगी
नभ-कलश से सुधा आपकी राह में
खुद ब खुद आ बरसने बिखरने लगी
आपकी भ्रू के ही इंगितों में बँधे
दूज के तीज के चौथ के चन्द्रमा
आपके नैन की लेके गहराईयाँ
रँ नूतन लगा ओढ़ने आस्मां
अपनी सीमाओं पर हिचकिचाती हुई
कल्पना सोच कर कुछ, लजाने लगी
गंध ने रंग को शिल्प में ढाल कर
एक प्रतिमा गढ़ी, जो रही आपकी
इन्द्रधनुषी गगन पर संवरती हुई
जो छवि इक रही, थी छवि आपकी
पालकी में बिठा मौसमों को घटा
आपकी उंगलियों का इशारा तके
आपके इंगितों से समय चल रहा
कब ढले यामिनी और दिन कब उगे
ज़िन्दगी आपको केन्द्र अपना बना
साधना के दिये फिर जलाने लगी.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
शिल्पकारों का सपना संजीवित हुआ एक ही मूर्त्ति में ज्यों संवरने लगा चित्रकारों का हर रंग छू कूचियां, एक ही चित्र में ज्यों निखरने लगा फागुनी ...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
3 comments:
वाह राकेश भाई, बहुत खुब:
ज़िन्दगी आपको केन्द्र अपना बना
साधना के दिये फिर जलाने लगी.
बह्ते भावों की दरिया मे डुबकी लगा
जिंदगी की राह फिर जगमगाने लगी.
राकेश जी बहुत नई - नई उमपाओं के सितारों से सजाते हैं आप कविता के दामन को :}
सांझ के दीप की रश्मियां आपकी
दॄष्टि का स्पर्श पा जगमगाने लगीं
नई - नई उपमाओं को जब भी है पढा
मैं डूबती लहरों से सर को उठाने लगी :}
डॉ० भावना
*****
कितना सुन्दर !
Post a Comment