नूतन अंकुर यहाँ प्रस्फुटित होने को है

 एक एक कर झरे शाख़ से 

पत्र तीन सौ पेंसठ पूरे 

नई आस का नूतन अंकुर

यहाँ प्रस्फुटित होने वाला


विगत वर्ष इतिहास हो गए 

उनके पृष्ठ न खुलें ज़रा भी 

घटित, पुनः दुहराया जाए 

शेष न हों इच्छाएं बाकी 

पीछे मुड़  कर इस जीवन की 

राहों पर अब नहीं देखना 

मूँद चुकी है जो पलकों को 

नहीं जगानी पुनः वेदना 


अभिलाषा का नया। सूर्य हो

नए वर्ष में उगने वाला


भोगी हुई पीर की पन्ने 

मन पुस्तक से चलो हटा दें

जो अवशेष शेष सपनों के

उन सब का अस्तित्व मिटा दें

वातावरण स्वच्छ रखने का

नव संकल्प उठाएँ हम तुम

आरोगी हर जन गण मन हो

नई आस के फ़ुटे विद्रम


महा काल  के समय ग्रंथ का

नया पृष्ठ हो खुलने वाला


निश्चय की ले कलम हाथ में

लिखें स्वयं अपने आगत को

है हमको अधिकार, द्वार पर

किसे बुला लाएँ स्वागत को 

क्या नकारना । क्या संवारना ।

है इस पर अधिकार हमारा 

किन रंगों की रच  रांगोली

सजा रखें आँगन चौबारा 


नया सूर्य इक, नवल चंद्रमा

यहाँ उदित अब होने वाला 



राकेश खंडेलवाल

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