साथ में हेमंत के कोहरा घना घिरने लगा
और सूरज दोपहर को उग के फिर छिपने लगा
भोर वाली लालिमाएँ लुप्त सारी हो गई
सुरमई संध्याएं लगता पंथ में ही खो गईं
दॄष्टि के आकाश पर बादल उमड़ तिरने लगा
सांझ की बारादरी पे डल गई काली चिकें
द्वार की नजदीकयों में दूर के ही भ्रम दिखें
सूझ को बस स्पर्श का ही साथ अब मिलने लगा
रात की ठंडी अंगीठी पर चढ़ा पकता हुआ
सूप यह मशरूम का कुछ और भी गाढ़ा हुआ
फिर उफन कर फर्श पर टिप टिप यहां गिरने लगा
साथ में हेमंत के कोहरा घना घिरने लगा
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