है माता अभिनन्दन तेरा

सभी माताओं को सादर नमन सहित मातॄ-दिवस २००८ पर
काव्य-पुष्पांजलि :-



शब्द ने शीश अपना झुका कर कहा, मैं हूँ अक्षम मुझे माफ़ कर दीजिये
जो है भाषा स्वयं, अक्षरा है स्वयं मेरी क्षमता कहाँ कुछ उसे कह सकूँ
भावना की वही एक प्रतिमूर्ति है, वो ही ममता है, करुणा है, है वो दया
कामना है यही उसके आशीश के एक कण का हूँ मैं पात्र, ये कह सकूँ


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धड़्कन धड़कन पल पल करती कोटि कोटि माँ वन्दन तेरा
साँस साँस में सुरभित मेरी, है माता अभिनन्दन तेरा

ज्ञान नहीं है, बुद्धि नहीं है जो तुझको वर्णित कर पाये
शब्दों ने क्षमता कब पाई तुझको संबोधित कर पाये
तू अनन्त है फिर भी केवल एक नाम में रहे समाहित
किन्तु असम्भव गीत एक भी तेरी महिमा को गा पाये

जीवन को महकाता है बस आशीषों का चन्दन तेर
माता है अभिनन्दन तेरा

तेरे आँचल के साये ने ज्ञान दिया है गौतम वाला
तूने ही कानों में घोला पहला मंत्र आस्था वाला
शब्द अधर को तूने सौंपे, बोईं कंठ सुरों की फ़सलें
जीवन ने तेरे ही कारण जीवन का है होश संभाला

उॠण न होगा कभी एक पल, मेरे उर का स्पंदन, तेरा
है माता अभिनन्दन तेरा

भोर निशा तुझको आराधूँ, मात्र एक दिन नहीं बरस में
नित्य शांति पाई है अविरल, तेरे कोमल एक परस में
देववन्दिता, सुर-मुनि पूजित,आद्य शक्ति तू सॄष्टा जग की
निराकार,साकार,चराचर, सब कुछ तेरे एक दरस में

मेरे पास न मेरा कुछ भी, जो भी है तन मन धन, तेरा
माता है अभिनन्दन तेरा.


राकेश खंडेलवाल
मातॄ-दिवस २००८

7 comments:

रंजू भाटिया said...

तेरे आँचल के साये ने ज्ञान दिया है गौतम वाला
तूने ही कानों में घोला पहला मंत्र आस्था वाला
शब्द अधर को तूने सौंपे, बोईं कंठ सुरों की फ़सलें
जीवन ने तेरे ही कारण जीवन का है होश संभाला

बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आपने राकेश जी .माँ शब्द ही एक कविता है

mamta said...

एक-एक शब्द दिल की गहराई तक चले गए।

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

Udan Tashtari said...

मातृ दिवस पर मातृशक्ति को इस रचना से बेहतर और क्या तोहफा होगा!!

अद्भुत!!

राजीव रंजन प्रसाद said...

भोर निशा तुझको आराधूँ, मात्र एक दिन नहीं बरस में
नित्य शांति पाई है अविरल, तेरे कोमल एक परस में
देववन्दिता, सुर-मुनि पूजित,आद्य शक्ति तू सॄष्टा जग की
निराकार,साकार,चराचर, सब कुछ तेरे एक दर्स में

मेरे पास न मेरा कुछ भी, जो भी है तन मन धन, तेरा
माता है अभिनन्दन तेरा.


बेहतरीन रचना। माँ के मर्म को चित्रित करती हुई..

***राजीव रंजन प्रसाद

Rama said...

डा. रमा द्विवेदी....

माँ के लिए इससे बढ़कर सम्मान क्या हो सकता है? माँ के लिए शब्द सुमन ही बहुत हैं ....माँ सृष्टि क बीज तत्व है जिसमें सारा जगत ही नहीं देवी देवता सब समाए हुए हैं.....संसार भर की माँओं को शत-शत नमन..
राकेश जी आपकी काव्यशक्ति को बारम्बार नमन ....

rekhamaitra said...

shakti too shrishta jag kee-sundar bhav hain.is dhara me ek maa hee eisa rishta hai jisme bina kisee asha ke sirf dene ka khayaal hai, baaqee sare to aadan -pradaan ke rishten hain.
abhinandan!!!!!!!!!!!

Kavita Vachaknavee said...

माँ के प्रति यही दृष्टि जन जन में यदि आ जाए तो मातृदिवस जैसी संकल्पना के लिए एक दिन नहीं एक जीवन कम पड़े. शुभकामनाओं के लिए आभार के साथ ही रचना के लिए बधाई.

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