नववर्ष 2024
गीत कलश
काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये
नव वर्ष २०२४
अधूरी रही
स्नेह भर दीप में वर्तिकाएँ जली
एक बरस अब यह फिर बीत
विदा २०२३ एक कहानी को दुहराते
प्यार के इन गीतों को -सोच रहा
प्यार के गीतों कोसोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को
21 November 2023
वर्ष बयालीस बीते प्रणय पर्व के
दीपावली २०२३
दीप पर्व
कक्ष की दीवार पर नव लेप चूने का चढ़ा
बारह महीने से जमा था गर्द का बादल उड़ा
फूल गमलों में उगे थे मुस्कुराने लग गये
सांझियों को ले गये टेसू करा कर के विदा
दादी बोली आंगनबाड़ी अल्पनाएँ काढ़ कर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर
स्वास्थ्य धनवंरुभिखीरे स्वर्ण कलशों से गिरा।
तन बदन पर और मन पर संदली उबटन लगा
कृष्ण पक्षी रूप की इस इक चतुर्दश को यहाँ
हीराजनियों सा दमकता गात का हर इक सिरा
पूर्णिमा होती अमावस लगती रहेगी थाल भर
रोशनी की अब नदी बहती रहेगी साल भर
देव पूजन के लिए मोदक इमारतों हैं सजे
गुझिया पपड़ी साथ लेकर सेव बूँदी आ गये
बालूशाही, चमचमों के साथ रसगुल्ले लिये
देख छप्पन भोग सम्मुख दांत में उँगली दबे
ख़ुश्बूएँ चुंबन यही जड़ाती रहेंगी गाल पर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर
कृष्ण की चढ़े गिरी को पुनः कर परिकल्पना
लग गया छत्तीस। गंजन , भोग छप्पन सिलसिला
सात परकम्मा समेटें सात कोसी। दूरियाँ
जोत जन्मों में न मिलता, एक इस दिन वो मिला
गोरधनी की जय सदा बुलाती रहेगी चल पद।
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी सालभर
पूर्णता यह की यम की द्विहम को मिले
भाई की रक्षा करेगीन बहन यम के दूत से
ओढ़नी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
कुमुमी फुटेज रात के व्योम में
कुमकुमी फुटेज लग गये रात के व्योम में
पृष्ठ इतिहास के खोलते दीपाली
पृष्ठ इतिहास के द्वार को खटखटा
अंतिम रंग भररे जाता हूँ
पता नहीं तूलिका रंग कल भरे न भरे किसी शब्द में
अंतिम धड़कन
जीवन पूँजी
चलती हुई घड़ी के सैंग सैंग खर्च हो रही जीवन पूँजी
किसे पारा कब निमिष कौन सा अंतिम धड़कन ख़र्च कर चले
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
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हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
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जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...