आभारी हैं साँसें उसकी जो अव्यक्त, सभी पर परिचित
रहा सौंपता नई अस्मिता जो नित ही बेनाम नाम को
आभारी हूँ सदा प्रेरणा बन कर साथ रहा जो मेरे
है उसका आभार दीप बन पीता आया घिरे अँधेरे
अन्त:स में कर रहा प्रवाहित जो भावों का अविरल निर्झर
शब्दों में ढल होठों पर आ जिसने हर पल गीत बिखेरे
भाषा और व्याकरण में ढल जो स्वर का श्रूंगार कर रहा
नित्य सुहागन कर देता है दूर क्षितिज ढल रही शाम को
है उसका आभार, शब्द जो आभारों के सौंप रहा है
अन्तर्मन की गहन गुफ़ा में जो दामिनि सा कौंध रहा है
है उसका आभार सांस की सोई हुई मौन सरगम में
धड़कन की अविराम गति की तालें आकर रोप रहा है
उसका है आभार विगत को कर देता है जो संजीवित
फिर सुधियों में ले आता है अपने छोड़े हुये गांव को
मिल जाता है कभी कहीं पर भूले भटके परछाईं में
मिल जाता है कभी अचानक, बिखरी बिखरी जुन्हाई में
जलतरंग बन कर लहरा है आंखों की गहरी झीलों में
आभारी हूँ उसका, जिसकी छाप भोर की अरुणाई में
आभारी हूँ , गीतों के इस नित्य हो रहे सिरजन पथ पर
बन कर नव पाथेय दे रहा गतियाँ जो थक रहे पाँव को
रहा सौंपता नई अस्मिता जो नित ही बेनाम नाम को
आभारी हूँ सदा प्रेरणा बन कर साथ रहा जो मेरे
है उसका आभार दीप बन पीता आया घिरे अँधेरे
अन्त:स में कर रहा प्रवाहित जो भावों का अविरल निर्झर
शब्दों में ढल होठों पर आ जिसने हर पल गीत बिखेरे
भाषा और व्याकरण में ढल जो स्वर का श्रूंगार कर रहा
नित्य सुहागन कर देता है दूर क्षितिज ढल रही शाम को
है उसका आभार, शब्द जो आभारों के सौंप रहा है
अन्तर्मन की गहन गुफ़ा में जो दामिनि सा कौंध रहा है
है उसका आभार सांस की सोई हुई मौन सरगम में
धड़कन की अविराम गति की तालें आकर रोप रहा है
उसका है आभार विगत को कर देता है जो संजीवित
फिर सुधियों में ले आता है अपने छोड़े हुये गांव को
मिल जाता है कभी कहीं पर भूले भटके परछाईं में
मिल जाता है कभी अचानक, बिखरी बिखरी जुन्हाई में
जलतरंग बन कर लहरा है आंखों की गहरी झीलों में
आभारी हूँ उसका, जिसकी छाप भोर की अरुणाई में
आभारी हूँ , गीतों के इस नित्य हो रहे सिरजन पथ पर
बन कर नव पाथेय दे रहा गतियाँ जो थक रहे पाँव को
No comments:
Post a Comment