आद्यशक्ति ने बीजरूप में जिसका प्रादुर्भाव किया है
सकल सृष्टि की संरचना में बन कर रहा सदा
सहयोगी
शांत रूप में राम, क्रोध में बन जाया करता है शंकर
और कृष्ण बन कर जीवन में होता है कर्मो का योगी
आज पुनः उस एक पिता के आगे हो करबद्ध हृदय ये
नतमस्तक है
, और कर रहा
रह रह के सादर अभिनंदन
मां की ममता को देता है जीवन मे आयाम नए नित
पितृ दिवस पर अर्पित उसको मुट्ठी भर शब्दों का चंदन
No comments:
Post a Comment