उलझन में फंसे शामो सुबह बीत रहे हैँ
अंधियारे उजालो से लगे जीत रहे हैं
झंझाओं के आगोश में लिपटा हुआ है अम्न
सुख चैन लगा हो चुके बरसों से यहां दफ्न
ओढ़े हुए है ख़ौफ़ को नीची हुई नजर
जम्हूरियत का कांपता बूढ़ा हुआ शजर
फिर भी किये उम्मीद की शम्मओं को रोशन
रह रह के हुलसता है जिगर ईद मुबारक
कहती है ये खुशियों की सुबह ईद मुबारक
विस्फोट ही विस्फोट हैं हर सिम्त जहां में
रब की नसीहतों के सफे जाने कहाँ है
इस्लाम का ले नाम उठाते है जलजला
चाहे है हर एक गांव में बन जाए कर्बला
कोशिश है कि रमजान में घोल आ मोहर्रम
अब और मलाला नहीं सह पाएगी सितम
आज़िज़ हो नफ़रतो से ये कहने लगा है दिल
अब और न घुल पाये ज़हर ईद मुबारक
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक
अल कायदा को आज सिखाना है कायदा
हम्मास में यदि हम नहीं तो क्या है फायदा
कश्मीर में गूंजे चलो अब मीर की गज़ले
बोको-हरम का अब कोइ भी नाम तक न ले
काबुल हो या बगदाद हो या मानचेस्टर
पेरिस मे न हो खौफ़ की ज़द मे कोइ बशर
उतरे फलक से इश्क़ में डूबी जो आ बहे
आबे हयात की हो नहर, ईद मुबारक
कहती है ये खुशियों की सुबह ईद मुबारक
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