दीपोत्सव २०२२

 दीपोत्सव २०२२



वर्तिकाएँ जाली इस बरस दीप में
एक अंदेशा उनको लपेटे हुए
मुद्रास्फीति का है कुहासा घना
ज्योति का व्योम खुद में समेटे हुए

हर्ष उल्लास है. हैं उमंगे बहुत
जेब की स्थिति खाड़ी सामने प्रश्न बन
देव पूजन को चंदन व अक्षत नहीं
वाटिका में छिपे रह गए हैं सुमन
मूर्तियाँ हो गई हैं पहुँच के परे
रंग रांगोलियों के हुए धुँधमाय
एक अदृश्य सा कुछ खड़ा सामने
हर घड़ी पर डसे जा रहा है हीदय 

घर के अस्नांजहों में ये मन सोचता
तीन वर्षों से किसने ग़ज़ब हो गए
सानंद तीज,करवा चतुर्थी सहित
सारे त्योहार क़िस्मत के हेठे हुए 

हो प्रतिष्ठित रही लक्ष्मी औ शारदा
और गणपति लिए सौम्य मुद्राओं को
बढ़ रही क़ीमतों ने प्रभावित किए
देवताओं की भी आ पूजाओं को
थाल मोदक का रीता का रीता रहा
गंध ऋतुफल रहे बंद सूजन में 
शून्य बिखरा रसोई में बैठा रहा
नींद तोड़ी नहीं एक पकवान ने

टीवी विज्ञापनों को दिखाता रहा
खिल्लियाँ दर्शकों की उड़ाते हुए 
मूल्य की चिप्पियाँ साथ में थी खड़ी
जेब का पर्स का मुँह चिढ़ाते हुए 

एक संकल्प है और है आस्था
ये विरासत हमें पीढ़ियों से मिली
चाहे पतझार हो रोष भर सामने
मान में निष्ठाओं की किंतु कलियाँ खिली
हम समर्पित हुए आप ही ईश को
और आडम्बरों की ज़रूरत नहीं 
जो नियति ने किया तय. मिलेगा वही
फिर अपेक्षाएँ कोई करे क्यों कहीं 

आओ प्रज्ज्वल करे कामना के दिए
इक नई भोर कल की बुलाते हुए
ये तिमिर काट कर रश्मियों की प्रभा
आंगना की भरे जगमगाते हुए 

राकेश खंडेलवाल
अक्तूबर २०२२ 








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