मंडवे तल की गाँठ रसभरी आज खुला रस ग्रंथ सामने तब यह भेद खुला है पूरा अवगुंठित कैसे होता रस इसे जलेबी ने समझाया गरमागरम निकल कर आइ डुबकी लगा चाशनी में जब होठों पर पहला चुम्बन वह रसना ने अनुभूत किया तब कितने प्रश्न उठ गए सम्मुख कैसे काया एक छरहरी अंग अंग में में रस के झरने छलकाती यह देह सुनहरी इस गुत्थी में उलझ गया मन समाधान पर मिल ना पाया मैदा पानी दही और इक नीबू का रस, स्वाद विहीना जल में घुली हुई शक्कर ने थोड़ा सा मीठापन दीना लेकिन सम्मिश्रण इन सबका कलाकार की कोन तूलिका से बिखरा इक गरम तई पर नए रसों की लिखी भूमिका अन्य सभी मिष्ठान उपेक्षित हुए, जलेबी ने ललचाया हुई सुबह जब बिरज धाम में हलवाई भट्टी सुलगाए सबसे पहले चढ़ा कढ़ाई सिर्फ़ जलेबी गरम बनाए कुल्हड़ भरे दूध के संग में एक पाव भर लिए जलेबी खाकर करते शुरू दिवस को बनिया, धुनिया और पांडे जी। रस से शुरू अंत रस ही पर यही जलेबी की है माया
होती. हमको गया बताया कितना होता बिन अनुभव के कोई उसे समझ ना पाया
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नव वर्ष २०२४
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