आपकीटिप्पणी

ju सुनो. अँधेरे का अपराधी केवल नहीं तिमिर ही होता वह दीपक की लौ भी तम को जो प्रकाश में बदल न पाए बिना बात की गई प्रशंसा , है गतिरोध सफल लेखन का जो सिरजन की प्रगति पंथ में रोड़ा बन कर इ अटकाए चंद निरर्थक टिप्पणियों से बेहतर है चुप ही रह जाना जो न करो स्वीकार इसे तो क्या है तर्क उसे बतलाना है शत सहस स्वीकृतियों से अधिक एक वह पंक्ति बताए कहाँ दोष है और कहाँ पर भाव न हो पाए सम्प्रेषित वह ही प्रश्नचिह्न रचना पर, बना प्रेरणा कलाकार को नई दिशा का पंथ ढूँढते को करता वह ही उत्प्रेरित फ़ेसबुकी शिष्टाचारों का है अनुसरण व्यर्थ यह मानो शब्द। भाव जब समझ न आएँ तो बेहतर है चुप ही रह जाना राकेश खंडेलवाल अप्रेल २०२२ Sent from my iPad

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नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...