कल जहाँ से लौट कर हम आ गए सब कुछ भुला कर
आज फिर से याद की वे पुस्तकें खुलने लगी हैं
फिर लगी है तैरने इस साँझ में धुन बाँसुरी की
भग्न मंदिर में जला कर रख गया है दीप कोई
पनघटों की राह पर झंकारती है पैंजनी फिर
पीपलों की छाँह में फिर जागती चौपाल सोई
कल जहाँ से लौट कर हम आ गए, सूनी कुटी वह
गूँजते शहनाई स्वर के साथ फिर सजने लगी है
तीर पर सरिताओ के होने लगा फिर सूर्य वंदन
भोर में फिर गीत गूँजे है प्रभाती के स्वरों में
गुरुकुलों में शंख गूँजे है पुनः संदीपनो के
आरती होने लागी है सांझ की फिर मंदिरों में
आज फिर से याद की वे पुस्तकें खुलने लगी हैं
फिर लगी है तैरने इस साँझ में धुन बाँसुरी की
भग्न मंदिर में जला कर रख गया है दीप कोई
पनघटों की राह पर झंकारती है पैंजनी फिर
पीपलों की छाँह में फिर जागती चौपाल सोई
कल जहाँ से लौट कर हम आ गए, सूनी कुटी वह
गूँजते शहनाई स्वर के साथ फिर सजने लगी है
तीर पर सरिताओ के होने लगा फिर सूर्य वंदन
भोर में फिर गीत गूँजे है प्रभाती के स्वरों में
गुरुकुलों में शंख गूँजे है पुनः संदीपनो के
आरती होने लागी है सांझ की फिर मंदिरों में
कल जहाँ से लौट आईं आहुति की मंत्र ध्वनियाँ
आज फिर से उस जगह पर आस्था जगने लगी है
कल जहां से लौट आये गीत-कविता ले निराशा
देख मंचों पर विदूषक, हाथ में कासा संभाले
आज फिर से हो रही जीवंत भाषा की धरोहर
काव्य में होने लगे, साकेत-दिनकर के हवाले
कल जहां थे हाशियों पर शब्द शिल्पी मौन साधे
आज फिर से लेखनी नूतन सृजन करने लगी है
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