कोई नाम तुम्हारा ले तो


एकाकी पतझर की संध्या
के अलसाए निर्जन पथ पर
अकस्मात् दीपक जलते हैं 

झाड़ी में जब जुगनू चमकें
होड़ लगा कर आसमान की कंदीलों से 
पिघले हुए स्वर्ण के टुकड़े
लहर लहर बन कर तेरा करते झीलों में

भटके हुए शब्द चुन चुन कर 
कोई नाम तुम्हारा ले तो 
हरसिंगार झरा करते हैं 

उतर रही रजनी डोली से
धीरे धीरे पग में बांधी चाँदी की पायल खनकाती
और नयन में आँजे सपने
पढ़ने लगें लिखी न अब तक प्रीत रंग में भीगी पाती 

तब मन  के तहख़ाने से आ
भाव अचानक शब्दों में ढल  कर
प्रस्फुटित हुआ करते हैं 

प्राची की खुलती खिड़की से 
पिघली हुई चाँदनी टपके कलियों के कोमल पाटल पर 
उषा के झीने आँचल से 
छनती हुई धूप छितराए इंद्रधनुष नभ के आँचल पर 

बीती हुई निशा के मसले 
हुये मोतिए की पाँखुर से 
संदल  मेघ उड़ा करते हैं 

जून २०२१ 








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