ओढ़े भोर गुलाबी चूनर

 

ओढ़े भोर गुलाबी चूनर

ओढ़े भोर गुलाबी चूनर
और दुपहरी हुई गुनगुनी
पतझड़ की ये हवा छेड़ती
आज शिरा में नई शिंजिनी

धीरे धीरे फैल रहा है रजनी का सुरमई आँचल
सूरज परदे डाल रहा है कड़ी धूप के वातायन पर
उत्तर दिशि से निकल चल दिए हैं मेहमान हवा के झोंके
बादल ध्यान दे रहे लगता बर्फ़ फुही के रासायनिक पर 

दूब लान की रंग बदलती
लगी हरित पर आज चटकनी
और शिरा में बज़ी शिंजिनी 

पेड़ों के परिधान बदलते हरे सिंदूरी नीले पीले
भूरे कत्थई और बैंगनी   जैसे हो फागुन घिर आया
पल पल पर हल्के हो जाते कभी और हैं कभी चतखते
जैसे सारंगी ने कोई विरह मिलन का  गीत बनाया

 इस परिवर्तन ने पहनाई 
दिशा दिशा को नई करधनी 
नस नस में तीर रही शिंजिनी 

दोपहरी इन दिनों युवा होने से पहले ही बुढ़ियाती
संध्या के आने से पहले जले दीप अब संझवाती के
जुगनू के संग आँखमिचौली खेल रहे आ नभ के तारे 
आ नुक्कड़ पर खड़े हुए दिन विजयादशमी नवराती के

मौसम भेजे आज निमंत्रण
नभ में थिरके शरद चाँदनी
भुजपाशों में घिरे शिंजिनी 

राकेश खंडेलवाल 
२५ सितम्बर २०२२ 

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