एक तिहाई सितम्बर बीत
चला है विषुव का दिन क़रीब ही है। दिन भर फैली हुई धूप की चादर सिमटती जा रही है
और रात का आँचल आकाश को धीरे धीरे ढकने लगा है तो मौसम का आग्रह हुआ की इस बेला
में ऋत परिवर्तन पर कहा जाए ।
सोचा तो यही था किंतु सुबह चाय पीते हुए
संदेश देखने लगा तो फ़ेसबुक और वहात्सेप्प समूहों पर उपलब्ध अतुलनीय कृतियाँ देख
कर उँगलियों से कलम छोट गई और मन महान रचनाकारों के वंदन में लग गया
महाकवि, साहित्यकार ही
तुमको मेरे शत शत वंदन
तुम लिखते हो एक दिवस में कम से कम बारह
रचनाएँ
तीन ग़ज़ल गाईं, गीत चार हैं तीन लीक, दो व्यंग कढ़ाएँ
हर समूह के खुले पटल पर चित्र तुम्हारा
जी अंकित है
तुम बतलाते रहते सबको, कहाँ तुम्हारी है चर्चाएँ
हर हफ़्ते नव खंड काव्य का
करते हो तुम ही तो सर्जन
व्हटसेप्प के हर समूह में तुम मौजूद रहा
जरते हो
ग्रुप के नियम सदा ही अपने ठेंगे पर धर
कर चलते हो
जिस रचना पर तुम्हारा, जिस गोष्ठी में शामिल हो तुम
नित्य धड़ल्ले से तुम ये सब अग्रेषित
करते रहते हो
तुम सचमुच साहित्य प्रणेता
स्वीकारो मेरा अभिनंदन
वेद व्यास की अमर लेखनी के तुम ही
उत्तराधिकारी
दिनकर, पंत, प्रसाद सभी बस जाएँ तुम पर ही बलिहारी
सूरा में अवतार नए तुम, मीरा ने सिखलाया गायन
पल पल नव सर्जन करने की लगी एक तुमको
बीमारी
जलन विचारी मेरी, करती कविवर
आज तुम्हें सम्पूर्ण समर्पण
शत शत तुमको हैं अभिनंदन
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