वह प्यार नहीं कर सकता

 



वह प्यार नहीं कर सकता

बस निहित स्वार्थ में घि​रा ​ हुआ जिसका दर्शन
बह निश्छल प्यार नहीं कर सकता जीवन में

साँसों की हर इक डोर बंधी कठपुतली सी
उँगली से सूत्रधा के कर की थिरकात से 
उससे ही इंगित पा चलता रहता गतिमाम 
मन है असहाय नहीं कुछ कर पाता निज से 
जो कह यह, टाल दिया करते ज़िम्मेदारी
विश्वास स्वर्ण पर वे कैसे कर पाएँगे
जिनको अपने निश्चय पर निष्ठा रही नहीं
ठोकर खा गिरते गिरते ही रह पाएँगे

कब सम्भव उसको बढ़ा अँजुरी भर लेना
प्यासे अधरों को नीर,  बरसातें सावन में 

रखता है  अभिलाषा का काजल नयन  आँज
सम्भव है उसे भीख में वांछित मिल जाये
कोई अनुकूल करवाटे ले ले समय चक्र
बिल्ली के भाग्य खुलें औ छींका गिर जाए 
राहों में अपना पग रखने से पहले ही 
आशंका को इक घनीभूत  ​चादर ​ लिपटे 
असमंजस के धूमिल कोवरे को फैला कर
अपने पाथेय सजाने से  रह जाएँगे 

निश्चित  उस यायावर को मंज़िल सूभर है 
 ​जिसको कदमों की  गति बस सिमटे आँगन में  

अनुभूति प्यार की उगती मन के अंदर से
जिससे न बंधे है कभी अपेक्षा के धागे
वह प्यार नहीं आवेग खनिक हो सकता है
प्रतफल जो उठे प्यार के भावों का माँगे
सम्पूर्ण समर्पण में संकोच जिसे होता
वो कब समझे है कहो प्यार की परिभाषा
शब्दों की सीमा में बंदी का ही हुई
वह ही न सकी है कभी प्यार की तो भाषा 

हो जिसे प्रीति सम्प्रेषण पर विश्वास नहीं
वी  बंध न सकेगा सहज प्रेम के बंधन में 

राकेश खंडेलवाल
सितम्बर २०२२ 

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