तेरा चंदन बदन यह
शाम के अंतिम प्रहर की
आलसी अंगड़ाइयों के
फ़लसफ़े फिर से सुनाता है तेरा चंदन बदन यह
भोर से संध्या तलक के उपवनों में
खिलखिलातीं झूमती हैं
तितलियाँ जिस गंध के अविरल प्रवाहित निर्झरों का
पान करती
और कलियों के अविकसित पाटलों को
खोल देते हैं मधुप जो
कुछ रसीले चुम्बनों की छपी में लिपटे हुए प्रेमिल स्वरों को
चूम कर के
एक वह अनुभूति फिर से
कर रहा जीवंत आकर
आ मेरे भजपाश में तेरा सलोना सा बदन यह
सावनी नभ में उमड़ती
बदलियों में टैंक रही गोटा किनारि जो रूपहली दमकती है
जल तरंगें छेड़ती सी
आ शिरा में शिंजिनी बन
और कुछ मल्हार के स्वर
जो उमड़ने लग पड़ें सारणियों के तार को छूकर निरंतर
थाप देते चंग पर झूमे
उमंगित रागिनी बन
इक पपीहे की मधुर आवाज़ लेकर
टेरा है दूर से ही
बूँद की चूनर लपेटे भीगता तेरा बदन यह
सुरमई। नभ की चदरिया
को बिछाकर, चाँदनी की झिलमिलाती साड़ियाँ तन पर लपेटे
थिरकते पग नृत्य करने
पेंजनी झंकार करके
तारकों के मध्य में
अंगड़ाइयाँ लेती हुई इक मनचली नीहारिका के ज्वार को भर
कर सहज भुजपाश अपने
तनिक पल को सिहर के
व्योम की।मंदाकिनी के तीर का कम्पन संजोए
बिजलियों की तड़पनों सा
एक झंझा की तरह उमड़ा तेरा चंदन बदन यह
आलसी अंगड़ाइयों के
फ़लसफ़े फिर से सुनाता है तेरा चंदन बदन यह
भोर से संध्या तलक के उपवनों में
खिलखिलातीं झूमती हैं
तितलियाँ जिस गंध के अविरल प्रवाहित निर्झरों का
पान करती
और कलियों के अविकसित पाटलों को
खोल देते हैं मधुप जो
कुछ रसीले चुम्बनों की छपी में लिपटे हुए प्रेमिल स्वरों को
चूम कर के
एक वह अनुभूति फिर से
कर रहा जीवंत आकर
आ मेरे भजपाश में तेरा सलोना सा बदन यह
सावनी नभ में उमड़ती
बदलियों में टैंक रही गोटा किनारि जो रूपहली दमकती है
जल तरंगें छेड़ती सी
आ शिरा में शिंजिनी बन
और कुछ मल्हार के स्वर
जो उमड़ने लग पड़ें सारणियों के तार को छूकर निरंतर
थाप देते चंग पर झूमे
उमंगित रागिनी बन
इक पपीहे की मधुर आवाज़ लेकर
टेरा है दूर से ही
बूँद की चूनर लपेटे भीगता तेरा बदन यह
सुरमई। नभ की चदरिया
को बिछाकर, चाँदनी की झिलमिलाती साड़ियाँ तन पर लपेटे
थिरकते पग नृत्य करने
पेंजनी झंकार करके
तारकों के मध्य में
अंगड़ाइयाँ लेती हुई इक मनचली नीहारिका के ज्वार को भर
कर सहज भुजपाश अपने
तनिक पल को सिहर के
व्योम की।मंदाकिनी के तीर का कम्पन संजोए
बिजलियों की तड़पनों सा
एक झंझा की तरह उमड़ा तेरा चंदन बदन यह
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