बहती हुई हवा की लहरों पर जो उड़ा पतंगों जैसा
एक तेरा है नाम सुनायने, इंद्रधनुष के रंगों वाला
नीले अम्बर में तिरते है धवल बादलों के जो टुकड़े
उन पर रश्मि धूप की टाँके सोनहली गोटे की झालर
इठलातीं है कई तरंगें उन्हें छेड़ कर के हौले से
झंकृत होती हैं तब वे सब नाम तुम्हारा ले अकुलाकर
उनमे से कोई बादल का टुकड़ा बिछुड़ अधर पर आया
सिहरन में अनुभूत हुआ तब, नाम प्रिये मधुपरकों वाला
जागी हुई भोर ने अपना बिम्ब निहारा जब नदिया में
छिड़ी हवा से तब लहरों ने जल तरंग की धुनें बजाई
झुकी तटी की दूब चूमने, होता आलोड़न सरग़म का
और पड़ी तब दूर कहीं से बंसी की आवाज़ सुनाई
अंगड़ाई लेकर गंधों ने लिखा कली के मृदु पाटल पर
कलासाधिके ! नाम रहा वो तेरा सहस अनंगों वाल
घोली स्याही घिरी घटा ने शाखाओं को कलम बना कर
पत्र पत्र पर लिखा एक हो नाम उभर कर आगे आया
गिरती हुई बूँद ने बोकर झंकारों को राग संवारे
मौसम ने छेड़ी शहनाई सारंगी ने स्वर दे गाया
दिशा दिशा के वातायन से द्वार खोल कर बिखरा प्रति पल
रहा नाम वो बस शतरूपे उद्गम नई उमंगों वाला
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