ज़िंदगी तो है जटिल ऋग्वेद के मंत्रों सरीखीअर्थ समझें इसलिए अनुवाद ढूँढे जा रहे हम
भोर उगती है किरण की गुत्थियों को साथ लेकर
गूढ़ प्रश्नों को थमा कर हाथ में, ढलते अंधेरे
प्रश्न पत्रों में लिखे उस प्रश्न को जानें ज़रा तो
यों अटक असमंजस्यों में बीत जाते हैं सवेरे
बीतते है दिन ग़ज़ल बन बिनरदीफो क़ाफ़िये के
और बस तरतीब को उस्ताद ढूँढे जा रहे हम
दोपहर कीकर वनों में देखती वट वृक्ष छाया
माँगती पद चिह्न मरुथल में बगूडों की उठन से
आगमन को साँझ के, उत्सुक निगाहों की बिछा कर
पास के पल खर्च कर देती बिना कोई जतन के
साँझ आती मौन व्रत को ओढ़ कर रक्खे बरस से
और करने के लिए संवाद ढूँढे जा रहे हम
रात की मुँडेर पर आती नहीं है चाँदनी भी
तारको को खूँटियों से खींच कर अपना दुशाला
नींद रह जाती उलझ कर बिस्तरों की सलवटों में
पृष्ठ खोले दूसरे दिन का उतर आता उजाला
हाथ की धूमिल लकीरों में लिखी है जी इबारत
बस उसी का कर सकें प्रतिवाद ढूँढे जा रहे हम
1 comment:
अहा!! अद्भुत
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