गाऊँ कैसा गीत

 

गाऊँ कैसा गीत अधर पर जो आकर सुर में ढल जाए 
शब्द शब्द छंदों की माला में आकर खुद ही जुड़ जाए 

भावों के अवगूँठन सारे
एक एक कर खुलते जाएँ 
खुली किताबों जैसे उनको
बिन कोशिश सब ही पढ़ पाएँ 
use 
अभिव्यक्ति के वातायन से पंख पसारें झट उड़ जाए
गाऊँ कैसा गीत तुम्हारे मन से जो जाकर जुड़ जाए 

अक्षर अक्षर शहद उँडेले
आतुर अधर रहे गाने को
सहज गंध सा बहे हवा में
शेष न कुछ हो समझाने को 

सरगम के सुर आतुर होकर स्वयं राग बोकर भर जाएँ
गाउन कैसे गीत, सभी जो मेरे संग मिल मिल कर गाएँ 

घिसे पिटे बिम्बो का जिसमें
कोई भी आभास नहीं हो
सब के ही मन को भा जाए
चाहे कुछ भी ख़ास नहीं हो 

दूर क्षितिज की सीमाओं के परे और विस्तृत हो जाएँ
गाऊँ कैसे गीत ? की जिनसे वाद्य स्वयं झंकृत हो जाएँ 

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