होली २०२२

 चला विदा ले शिशिर लौट कर उत्तर दिशि में अपने घर को
धीमे धीमे पग धरती आती है पुरवा की दुल्हनिया 
घूँघट के परदे से छनती हुई रूप की स्वर्णिम आभा
राहों में संगीत बिखेरे, कोमल पाँवों की पैंजनिया 


ख़ुशियों के गुलाल बिखराकर मंगल गान सुनाने के दिन
नई उमंगें सजा हृदय में ,हैं त्योहार मनाने के दिन 


बासंती ये धूप उतर कर लगी नहाने नील झील में
पिघला सूर्य सुनहरा करते हुए किनारे प्रतिबिम्बों में 
खलिहानों में रखी धान  की बाली से हैं होड़ लगाती 
लहराती अम्बर तक चूनर बिखरे हुए सात रंगों में 


चंगों पर दे दे कर थापें बम  लहरी को गाने के दिन
सारंगी पर गोरा-बादल की गाथा दुहराने के दिन 


लाल, हरे, नारंगी, पीले नीले कत्थई और जामनी 
रंग बिखेर ला मौसम ने भोर दुपहरी संध्या कितने 
इनकी रंगत  में डूबा मन निर्निमेष हो ताक  रहा है 
उड़ उड़ कर उल्लास सजाता, खुली आँख में मीठे सपने 
 
 फगुनाहट को ओढ़ बदन पर खुल कर फाग लुटाने के दिन 
जमनाजी के तट पर अब हैं शिव बूटी घुटवाने के दिन 


होली के हुरियारों की लो, ब्रज में फिरने लगी टोलियां 
लगे जमा होने कीकर के झाड़, नगर के चौराहों पर 
गुलरी, कते सूत के धागे, उपले, और गाँठ हल्दी की 
गेहूं। चना, मूँग, जौ चावल, उड़द मसूरे आलावों पर


 नंदगगाँव से बरसाने तक लट्ठ और ढालों वाले दिन 
कल को भुला आज को  बढ़ कर अपने गले लगाने के दिन 
 


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नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...