आइ बासंतिया ऋतु मचलती हुई
रंगतें पीली सरसों की चढ़ती हुई
अब दहकने लगी टेसुओं की अग़न
एक उल्लास में मन हुआ है मगन
सारे संशय घिरे, आज मिटने लगे
जो बिछुड़ थे गए ,फिर से मिलने लगे
आज तन मन सभी फाग़ूनी हो गया
रंग तुझ पे भी मस्ती का आये ज़रा
इश्क़ जो तू करे हो गुलाबी सदा
जा तुझे इश्क़ हो ले गुलाबी दुआ
रंग बिखरे फ़िज़ाओं में ले कत्थई
जामुनी, नीला, पीला, हरा चंपई
रंग नयनों। में कुछ आसमानी घिरे
और धानी लिपट चूनरी से उड़े
रंग नारंगियों का भरे बाँह में
लाल बिखरे तेरे पंथ में , राह में
रंग बादल में भर कर उड़ा व्योम में
रंग भर ले बदन के हर इक रोम में
फाग बस डूब कर मस्तियों में उड़ा
हो गुलाबी तेरा इश्क़ ले ले दुआ
छोड़ अपना नगर, आज ब्रजधाम चल
होली होने लगी है वहीं आजकल
नंद के गाँव से ढाल अपनी उठा
देख ले चल के बरसानियों की अदा
नाँद में घोल कर शिव की बूटी हरी
कर ले तू रूप से कुछ ज़रा मसखरी
भरके पिचकारियाँ यो सराबोर हो
तन बदन मन सब रंगे कुछ अछूता न हो
रंग भाभी के साली के मुख पर लगा
रंग हो प्रीत का है गुलाबी दुआ
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