चाकलेट हो हीरक मणियाँ, पुष्प, मुझे स्वीकार नहीं है
एक दिवस में जो हो सीमित, ऐसा अपना प्यार नहीं है
शतरूपे ! है प्यार हमारा एक धरोहर संस्कृतियों की
जिसको शाश्वत रूप दिया है कच ने और देवयानी ने
नल-दमयंती ने मिलकर के फिर आयाम दिए हैं नूतन
जगन्नाथ के साथ लवँगी की गाथा रहती वाणी पे
शब्दों में रह जाए संकुचित जो, ऐसा विस्तार नहीं है
वेलेंटाइन डे तक ही हो, ऐसा अपना प्यार नहीं है
कलासाधिके! जन्मांतर के सम्बंधों की रीत हमारी
जहाँ प्रीत की बाँसुरिया पर खनके सदा रूप की पायल
देती जहाँ निमंत्रण खुद चौहान पुत्र को राजकुमारी
उसी रीतिमय मर्यादा के सम्बंधों के हम तुम क़ायल
मन के अनुबंधों को वाणी में बंधना दरकार नहीं है
आई लव यू में सिमट सके जो, मीत हमारा प्यार नहीं है
बप्पादित्य और सोलंकी से शिव और सती की गाथा
सुनो सुनयने! कहाँ रही है चाकलेट बक्से पर निर्भर
रति अनंग से शाची पुरंदर के सम्बंधों को शिलालेख जो
करती रही, आत्मिक अनुबंधों की वह डोरी है सतवर
प्रीत अलौकिक औ है लौकिक, शब्दों का व्यवहार नहीं है
एक दिवस में सीमित रह ले ऐसा अपना प्यार नहीं है
वेलेंटाइन दिवस २०२२
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