आहना राधा गाला

 


एक झंकार उठ बीन के तार से
स्वर्ण नूपुर की ख़नकों से मिल कर गले
चाँदनी की किरण से फिसलते हुए
आज आइ उतर कर मेरी गोद में 

एक नन्ही कली  की मृदुल पाँखुरी
थरथराते हुए नव पुलक भर गई
रश्मियाँ हाथ में ले उगी भोर की 
अपने अस्तित्व का नाम नव लिख गई

मलयजी स्पर्श पाकर के सिहरी हुई 
झील के नीर में जो मची हलचलें 
उनमे पड़ते हुए बिम्ब से सज रही
रात के अंत पल में उगे स्वप्न सी 

मन में आह्लाद की गूंजने लग गई
अनगिनत आज सहसा ही शहनाइयाँ
अपने आराध्य का अंश पा सामने
शब्द करने लगे पृष्ठ पर नृत्य आ

आओ स्वागत तुम्हारा है  ओ आहना
ज़िंदगी में नई वाटिकाएँ खिलें
और अनुभूतियों से सुधा सिक्त हों
आगतो के निमिष तुमसे मिल कर गले

1 comment:

Anonymous said...

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