खेल खिलाता है जीवन में निशा दिवस वह एक प्रशिक्षक
क़ैद रहा जिसकी मुट्ठी में हर परिणाम पूर्व स्पर्धा के
चाहे सौ मीटर की दूरी या फिर चाहे मैराथन हो
तैरें कोई पीठ पर लेटा या फिर तितली बना हुआ हो
एक रिले की हिस्सेदारी या फिर हो अपना बलबूता
या फिर एक टीम का ज़िम्मा उसके काँधे टिका हुआ हो
प्रतियोगी को मिला हुआ अपना दायित्व निभाना ही है
क्षमता के अनुरूप, भूल कर क़िस्से अपनी व्यथा कथा के
धनुष हाथ हो तो प्रत्यंचा का तनना भी आवश्यक ही
लक्ष्य वेध के लिए ज़रूरी तन का, मन का संकेंद्रण ही
ध्येय प्राप्ति के लिए सुलभ वह कर देता है उपकरणों को
मौक़ा देकर करवाता है नए पंथ का अन्वेषण भी
कुछ प्रयास तो सुलभ किए हैं निर्णय को हासिल करने को
पा जाता है उन्हें वही जो संकल्पित है बिन दुविधा के
जीवन की चौसर पर खेला जाता खेल अनवरत पल छिन
कोई खेले साँसे गिनते, कोई दिल की धड़कन गिन-गिन
लेकिन जीत उसी की होती जो कर्मांयवाधिकारस्ते
हो कर खेला करता है परिणामों की चिंताओं के बिन
ओ अनुरागी आज खेल में उतरो खेलो, तब ही सम्भव
पा जाओ वरदान बरसते हैं जो स्वाहा और स्वधा के
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