हुई थी बात जब तुम से


हुई थी बात जब तुम से हुई ऐसी कई बातें 
अभी भी याद हैं मुझको वे संध्या में घिरी रातें

हवा के एक झोंके ने छुए कुंतल तुम्हारे थे 
उतर कर आ गए नीचे क्षितिज पर से सितारे थे 
विभा की ओढ़नी थामे मचलती थी गगन गंगा 
अधर के शब्द भावों में नयन ने तब उचारे थे 

सुधी के पाटलों पर हैं  वही अंकित मुलाक़ातें 
हुई थी बात जब तुम से हुई अक्सर नई बातें

सिमट आया निकट आकाश का नीलभ आमंत्रण
खिले मधुमास  में सहसा हुआ अनजान परिवर्तन
अकेलापन चला लेकर उसी नादिया किनारे पर 
जहाँ हमने किया था प्रीति का अनमोल गठबंधन 

मधुर स्मृति की निधि हैं वे मिली उस रोज़ सौग़ातें 
हुई थी बात जब तुमसे हुई थी ना नई बातें 

अभावों के क्षणों में क़ैद हैं हम आज अर्थों बिन
बने नयनों के सपने हैं वही खर्चे हुए पल छिन
हुए हम आज यायावर उमड़ती धुँध के सहचर 
मगर जीते हैं अब भी वे कटे थे साथ अपने दिन 

सजी हैं आज उन बातों के फूलों की ही बारातें 
हुई थी जब कभी तुमसे, हुई थी बस वही बातें 


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