*उसमें तेरा राम नहीं है*


अरे उपासक रोली चंदन लेकर जिसको सजा रहा ह

प्रतिमा एक सुशिल्पित है पर उसमें तेरा राम नहीं है!


राम एक विस्तार परे जो किसी कल्पना की सीमा के

राम एक दर्शन है जिससे जन्म लिया है संस्कृतियों ने 

राम एक अध्याय अनवरतसिमट नहीं पाया ग्रंथों में 

वर्णित हो न सका कितने ही यत्न किए युग के कवियों ने!


वाल्मीकि से ले तुलसी तक और गुप्त ने शब्द सँवारे

लेकिन शब्दों की सीमा में बँधने वाला राम नहीं है!


राम एक अध्यात्म समूचा आदि रहित हैअंत रहित है 

पुष्प वाटिका के प्रांगण मेंरूप प्रेम में डूबा लेखन

राम गूढ़ता है अवगुंठितराम एक अनुभूति सहज सी

राम भेजता वन महिषी  कोमौन हृदय का अंतर्वेदन!


तुझ में रामराम में तू हैउसका इंगित तेरा उपक्रम

कोई क्रिया नहीं उत्प्रेरक जिसका होता राम नहीं है!


जीवन की पहली धड़कन सेसाँसों की गति के अंतिम पल

समय सिंधुकी लहर-लहर पर अंकित है बस नाम एक ही

हर बोली मेंहर भाषा में  जन जन के मन का सम्बोधन 

कंठ स्वरों से मुखरित होता आया है बस राम एक ही 


करे प्रतिष्ठित मर्यादाएँकर्मवीर जो वचनबद्ध  हो

हर इक युग में प्रतिमानों से सज्जित होताराम वही है!


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