स्वागत है नव वर्ष



नए वर्ष की प्रथम भोर की पहली पहली किरण सुनहरी
अब इस बार खोल दें गाँठे बंधी हुई अरुणिम आँचल की

वर्ष वर्ष गुज़रे आशा की टूटी किरचे चुनते चुनते
नए वर्ष की अगवानी में नई नई आशाएँ बुनते
लेकिन सदा फिसलती डोरी हाथों से उड़ती पतंग की
बीत गई हर एक घड़ी बस प्रतिध्वनियो को सुनते सुनते

नए वर्ष का दीप जलाकर लाई देहरी किरण आज तू
अब इस  बार स्वरों की सरगम घोल कंठ में हलकी हलकी 

आँधी आती रही गली में पथ के सारे दिए बुझाकर
सुनी नहीं अम्बर ने भेजी सारी आवाज़ें लौटाकर
सूरज के रथ के पहियों की खिंची लीक पर चलते चलते
परिवर्तन को ढूँढ रही है दृष्टि आज रह रह अकुलाकर

हुई अपेक्षाओं में वृद्धि  वातायन पर नज़रें केंद्रित
नया वर्ष ये दुहराये न, बीती हुई कहानी कल की

तय हो चुका अभीतक जितना वो सारा ही सफ़र भला है
अब तेरे संग चमक रहा ये गगन और कुछ धुला धुला है
जागी नई नई निष्ठाएँ जीवन के बाव संकल्पों पर
साँसों की बगिया में आकर संदल जैसे घुला घुला है

नए वर्ष की। किरण खोल दे अब प्रकाश के स्रोत बंद जो
खिलती रहें पाँखुरी जिससे यहाँ ज्ञान के श्वेत कमल की 


१ जनवरी २०२०


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