बीते बरस अलविदा तुझुको जाते जाते इतना करना
अपने अर्जित संचय की निधि नए वर्ष को मत दे देना
तूने सदा इंद्रप्रस्थों को खांडवप्रस्थ बना कर छोड़ा
और संजोए अपने कोषों में दिन रात नए दावानल
अश्वत्थामा बना खड़ा ब्रह्मास्त्र चढ़ाए प्रत्यंचा पर
कलुषित मन से दूषित करता रहा प्रगति का झीना आँचल
चल समेट कर अपना डेरा अब अतीत के पथ पर बढ़ जा
तुझे शपथ अब पीछे मुड़ कर इन राहों को नहीं देखना
तूने अपनी अंगनाई में रोपी नित्य नई विष बेलें
जाति धर्म की, रंग भेद की और नए अलगावबाद की
रची झूठ की नव प्रतिमाएँ सत्य सुलाया शरशैय्या पर
आत्म मुग्ध तू रहा भुलाकर सुधियाँ कल की और आज की
नए वर्ष को इन बातों से दूर नया ही पंथ बनाना
इसीलिए अपनी परछाई भी उस पर पड़ने मत देना
आने वाले नए वर्ष से जुड़ी हमारी नव। आशाएँ
रहे हवा जल दूर प्रदूषण की तेरी अभिशप्त प्रथा से
तूने ख़ुद को मनमानी से इतिहासों में क़ैद कर लिया
नए वर्ष को अब लिखने है नव प्रकरण इक नई कथा के
बीते बरस याद के पन्ने तुझे मिटाने को आतुर है
कलम कह रही आगत का अब स्वागत गीत नया रच देना
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