आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ


खो गया  हूँ धुँध से घिर कर अंधेरों के शहर में
दीप मेरे आज तुम मुझको जगा कर जगमगाओ

सूर्य तो बंदी हुआ है राजमहली तलघरों में
औरकिरणो की गति पर लग रहे पहरे निरंतर

हम बहलते रह गए है देख कर बस चित्र धुंधले
आइनों पर धूल की परतें जमी है इंचियों भर

प्रार्थना में हुआ रत मन माँगता प्रतिदान इतना
इन अंधेरों से मुझे अब मुक्ति थोड़ी तो दिलाओ

पार तक बिखरी क्षितिज के अब तिमिर की राजधानी
कोई भी सम्भावना अब रोशनी की दिख न पातीं
कब तलक देंगे दिलासा है अँधेरा रात भर का
रात ढलने की कोई सूरत नजर में आ न पाती 

तुम अमावस की निशा से लड़ रहे दीपक अकेले
मैं तुम्हारा साथ दूँगा आओ पग से पग मिलाओ 

एक तुम पर ही टिकी है आस्था परिवर्तनों की
युद्ध में तुमसे पराजित हो हटेंगे यह अंधेरे
मैं उठा संकल्प नूतन साथ चलता हूँ तुम्हारे
हम बुला कर लाएँगे इस ओर फिर खिलते सवेरे

दीप मेरे जोड़ तुमसे मैं नई संभावनायें
हो रहा तत्पर चलो अब इक नए दिन को बुलाओ 

राकेश खंडेलवाल 












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